Osho On astrology Part First (IV)

Osho On astrology Part First (IV)

वैज्ञानिक अभी दस वर्षों में एक नई बात कह रहे हैं और वह यह कि प्रत्येक प्राणी के पास कोई ऐसी अंतर-इंद्रिय है जो जागतिक प्रभावों को अनुभव करती है। शायद मनुष्य के पास भी है, लेकिन मनुष्य ने अपनी बुध्दिमानी में उसे खोया है। मनुष्य अकेला प्राणी है जगत में जिसके पास बहुत चीजें हैं जो उसने बुध्दिमानी में खो दी हैं ;और बहुत सी चीजें जो उसके पास नहीं थीं उसने बुध्दिमानी में उनको पैदा करके खतरा मोल ले लिया है। जो है उसे खो दिया है, जो नहीं है उसे बना लिया है। 

 

लेकिन छोटे से छोटे प्राणी के पास भी कुछ संवेदना के अंतर-स्रोत हैं। और अब इसके लिए वैज्ञानिक आधार मिलने शुरू हो गए हैं कि अंतर-स्रोत हैं। ये अंतर-स्रोत इस बात की खबर late हैं कि इस पृथ्वी पैर जो जीवन है वह आइसोलेटेड नहीं है, वह सरे ब्रह्माण्ड सी संयुक्त है। और कहीं भी कुछ घटना घटती है तो उसके परिणाम यहां होने शुरू हो जाते हैं। 

 

जैसा मैं आपसे कह रहा था पैरासेलीसस के संबंध में, आधुनिक चिकित्सक भी इस नतीजे पर पहुंच रहे हैं कि जब भी सूर्य पर सूर्य पर अनेक बार धब्बे प्रकट होते हैं। ऐसे भी सूर्य पर कुछ धब्बे, डाट्स, स्पाट्स होते हैं। कभी वे बढ़ जाते हैं, कभी वे कम हो जाते है। जब सूर्य पर स्पाट्स बढ़ जाते हैं तो जमीन पर बीमारियों बढ़ जाती हैं। और जब सूर्य पर स्पाट्स कम हो जाते हैं तो जमीन पर बीमारियां कम हो जाती हैं। और जमीन से हम बीमारियां कभी न मिटा सकेंगे, जब तक सूर्य के स्पाट्स कायम है। 

 

हर ग्यारह वर्ष में सूरज पर भारी उत्पात होता हैं, बड़े विस्फोट होते हैं। पर जब ग्यारह वर्ष में सूरज पर विस्फोट होते हैं और उत्पात होते हैं तो पृथ्वी पर युद्ध और उत्पात होते हैं। पृथ्वी पर युद्धों का जो क्रम है वह हर दस वर्ष का है। महामारियों का जो क्रम है वह दस और ग्यारह वर्ष के बीच का है। क्रांतियों का जो क्रम है वह दस और ग्यारह वर्ष के बीच का है। 

 

एक बार खयाल में आना शुरू हो जाए कि हम अलग और पृथक नहीं हैं, संयुक्त हैं, आर्गेनिक हैं, तो फिर ज्योतिष को समझना आसान हो जाएगा। इसलिए में ये सारी बातें आपसे कह रहा हूं। कुछ आदमी को ऐसा खयाल पैदा हो गया था-अब भी है-कि ज्योतिष एक सुपरस्टीशन, एक अन्धविश्वास है। बहुत दूर तक यह बात सच भी मालूम पड़ती है। असल वही चीज अंधविशवास मालूम पड़ने लगती है जिसके पीछे हम वैज्ञानिक कारन बताने में असमर्थ हो जाएं। वैसे ज्योतिष बहुत वैज्ञानिक है। और विज्ञानं का अर्थ ही होता है कि काज और इफेक्ट के बीच, कार्य और कारण के बीच संबंध की तलाश!

 

ज्योतिष कहता यही है कि इस जगत में जो भी घटित होता है उसके कारण हैं। हमें ज्ञात न हों, यह हो सकता है। ज्योतिष यह कहता है कि भविष्य जो भी होगा वह अतीत से विच्छित्र नहीं हो सकता,उससे जुड़ा हुआ होगा। आप कल जो भी होंगे वह आज का ही जोड़ होगा। आज तक आप जो हैं वह बीते हुए कल का जोड़ है। ज्योतिष बहुत वैज्ञानिक चिंतन है। वह यह कहता है कि भविष्य अतीत से ही निकलेगा। आपका आज कल से निकला है, आपका आने वाला कल आज से निकलेगा। और ज्योतिष यह भी कहता है कि जो कल होने वाला है वह किसी सूक्ष्म अर्थों में आज भी हो जाना चाहिए। 

 

अब इसे थोड़ा समझें। अब्राहम लिंकन ने मरने के तीन दिन पहले एक सपना देखा, जिसमें उसने देखा कि उसकी हत्या कर दी गई है और व्हाइट हाउस के एक खास कमरे में उसकी लाश पड़ी हुई है। उसने नंबर भी कमरे का देखा। उसकी नींद खुल गई। वह हंसा, उसने अपनी पत्नी को कहा कि मैंने एक सपना देखा है कि मेरी हत्या कर दी गई है और फलां-फलां नंबर-उसी माकन में तो वह सोया हुआ व्हाइट हाउस के-इस मकान के फलां नंबर के कमरे में मेरी लाश पड़ी है। मेरे सिरहाने तू खड़ी हुई है और आस-पास फलां-फलां लोग खड़े हुए हैं। हंसी हुई,बात हुई; लिंकन सो गया, पत्नी सो गई। तीन दिन बाद लिंकन की हत्या हुई और उसी  नंबर के कमरे में और उसी जगह उसकी लाश तीन दिन बाद पड़ी थी और उसी क्रम में आदमी खड़े थे। 

 

अगर तीन दिन बाद जो होने वाला है वह किसी अर्थों में आज ही न हो गया हो तो उसका सपना कैसे निर्मित हो सकता है? उसकी सपने में झलक भी कैसे मिल सकती है? सपने में झलक तो उसी बात कि मिल सकती है जो किसी अर्थ में अभी अभी भी कहीं मौजूद हो। तो हम उसकी एक ग्लिम्प्स, खिड़की खोलें और हमें दिखाई पड़ जाए। लेकिन खिड़की के बाहर मौजूद हो! लेकिन कहीं मौजूद हो। 

 

ज्योतिष का मानना है कि भविष्य हमारा अज्ञान है इसलिए भविष्य है। अगर हमें ज्ञान हो तो भविष्य जैसी कोई घटना नहीं है। वह अभी भी कहीं मौजूद है। 

 

 महावीर के जीवन में एक घटना का उल्लेख है, और जिस पर एक बहुत बड़ा विवाद चला और महावीर के सामने ही महावीर के अनुयायियों का एक वर्ग टूट गया। और पांच सो महावीर के मुनियों ने अलग पंथ का निर्माण कर लिया उसी बात से। 

 

महावीर कहते थे, जो हो रहा है वह एक अर्थ में हो ही गया। जो हो रहा है वह एक अर्थ में हो ही गया।अगर आप चल पड़े तो एक अर्थ में पहुंच ही गए। अगर आप बूढ़े हो रहे हैं तो एक अर्थ मई बूढ़े हो ही गए महावीर कहते थे, जो हो रहा है, जो क्रियामाण है, वह हो ही गया।   

 

महावीर का एक शिष्य वर्षाकाल में महावीर से दूर था, बीमार था। उसने अपने एक शिष्य को कहा कि मेरे लिए चटाई बिछा दो। उसने चटाई बिछानी शुरू की। मुड़ी हुई, गोल लिपटी हुई चटाई को उसने थोड़ा सा खोला, तब महावीर के उस शिष्य को खयाल आया कि ठहरों, महावीर कहते हैं-जो हो रहा है वह हो ही गया! तू आधे में रुक जा! चटाई खुल तो रही है, लेकिन खुल नहीं गई-रुक जा! उसे अचानक खयाल हुआ कि यह तो महावीर बड़ी गलत बात कहते हैं। चटाई आधी खुली है, लेकिन खुल कहां गई! उसने चटाई वहीं रोक दी। वह लौट कर वर्षाकाल के बाद महावीर के पास आया और उसने कहा कि आप गलत कहते हैं कि जो रहा है वह हो ही गया! क्योंकि चटाई अभी भी आधी खुली रखी है-खुल रही थी, लेकिन खुल नहीं गई! तो में आपकी बात गलत सिद्ध करने आया हूं।  

 

महावीर ने उससे जो कहा, वह नहीं सझम पाया होगा, क्योंकि वह बहुत बाल-बुद्धि का रहा होगा, अन्यथा ऐसी बात लेकर नहीं आता। महावीर ने कहा : तूने रोका, रोक ही रहा था, और रुक ही गया! वह जो चटाई तू रोका, रोक रहा था, रुक गया! तूने सिर्फ चटाई रुकते देखी, एक और कि या भी साथ चल रही थी, वह हो गई! और फिर कब तक तेरी चटाई रुकी रहेगी? खुलनी शुरू हो गई है, खुल ही जाएगी। तू लौट कर जा ! वह जब लौट कर गया तो देखा, एक आदमी खोल कर उस पर लेटा हुआ है। विश्राम कर रहा था। इस आदमी ने सब गड़बड़ कर दिया। पूरा सिद्धांत ही खराब कर दिया। 

 

महावीर जब यह कहते थे कि जो हो रहा है वह हो ही गया, तो वे यह कहते थे, जो हो रहा है वह तो वर्तमान है, जो हो ही गया वह भविष्य है। कली खिल रही है-खिलही गई-खिल ही जाएगी। वह फूल तो भविष्य में बनेगी, अभी तो खिल ही रही है, अभी तो कली ही है, लेकिन जब खिल ही रही है तो खिल जाएगी। उसका खिल जाना भी कहीं घटित हो गया। 

    अब इसे हम जरा और तरह से देखें, थोड़ा कठिन पड़ेगा। 

 

हम सदा अतीत से देखते हैं। कली खिल रही है। हमारा जो चिंतन है, आमतौर से वह पास्ट ओरिएन्टेड है, अब अतीत से बंधा है। कहते हैं, कली खिल रही है, फूल की तरफ जा रही है, कली फूल बनेगी। लेकिन इससे उल्टा भी हो सकता है ! यह ऐसा है जैसे मैं आपको पीछे से धक्का दे रहा हूं, आपको आगे सरका रहा हूं। ऐसा भी हो सकता है, कोई आपको आगे से खींच रहा है। गति दोनों तरह हो सकती है। मैं आपको पीछे से धक्के दे रहा हूं, आप आगे जा रहे हैं। ऐसा भी हो सकता है, कोई आपको आगे से खींच रहा है, पीछे से कोई धक्का नहीं दे रहा है, और आप आगे जा रहे हैं। 

 

ज्योतिष का मानना है कि यह अधूरी दृष्टि है कि अतीत धक्का दे रहा है और भविष्य हो रहा है । पूरी दृष्टि यह है कि अतीत धक्का दे रहा है और भविष्य खींच रहा है। कली फूल बन रही है, इतना ही नहीं; फूल कली को फूल बनने के लिए पुकार भी रहा है, खींच भी रहा हैं। अतीत पीछे है, भविष्य आगे है, अभी वर्तमान के क्षण मैं एक कली हैं। पूरा अतीत धक्का दे रहा है, खुल जाओ ! पूरा भविष्य आवाहन दे रहा है, खुल जाओ ! अतीत और भविष्य दोनों के दबाब मैं कली फूल बनेगी। अगर कोई भविष्य न हो तो अतीत अकेला फूल न बना पाएगा। क्योंकि भविष्य में जगह चाहिए, स्पेस चाहिए। भविष्य स्थान दे तो ही कली फूल बन पाएगी।  

 

अगर कोई भविष्य न हो तो अतीत कितना ही सिर मारे, कितना ही धकाए-मैं आपको पीछे से कितना ही धक्का दूँ, लेकिन सामने एक दीवाल हो तो मैं आपको आगे न हटा पाऊंगा। आगे जगह चाहिए। मैं धक्का दूँ और आगे की जगह आपको स्वीकार कर ले, आमंत्रण दे दे कि आ जाओ, अतिथि बना ले, तो ही मेरा धक्का सार्थक हो पाए। मेरे धक्के के लिए भविष्य में जगह चाहिए। अतीत काम करता है, भविष्य जगह देता है। 

 

ज्योतिष की दृष्टि यह है कि अतीत पर खड़ीहुई दृष्टि अधूरी है, आधी वैज्ञानिक है ! भविष्य पुरे वक्त पुकाए रहा है, पुरे वक्त खींच रहा है। हमें पता नहीं है, हमें दिखाई नहीं पड़ता। यह हमारी आंख की कमजोरी है, यह हमारी दृष्टि की कमजोरी है। हम दूर नहीं देख पाते। हमें कल कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता।    

 

कृष्णमूर्ति की जन्म-कुंडली देखें कभी तो हैरान होंगे। अगर एनी बेसेंट ने और लीडबीटर ने फिकर की होती और कृष्णमूर्ति की जन्म-कुंडली देख ली होती तो भूल कर भी कृष्णमूर्ति जिस संगठन से संबंधित होंगे, उस संगठन को नष्ट करने वाले होंगे, जिस संस्था से संबंधित होंगे, उस संस्था को विसर्जित करवा देंगे; जिस संगठन के सदस्य बनेंगे, वह संगठन मर जाएगा।  

 

लेकिन एनी बेसेंट भी मानने को तैयार नहीं होती। कोई सोच भी नहीं सकता था। लेकिन हुआ यह। थियोसाफी ने उन्हें खड़ा करने की कोशिश की। थियोसाफी को उनकी वजह से इतना धक्का लगा की वह सदा के लिए मर गया आंदोलन। फिर एनी बेसेंट ने 'स्टार ऑफ दि ईस्ट' नाम की बड़ी संस्था खड़ी की। फिर एक दिन कृष्णमूर्ति उस संस्था को विसर्जित करके अलग हो गए। एनी बेसेंट ने पूरा जीवन उस संस्था को खड़ा करने में समर्पित किया और नष्ट किया अपने को। 

 

लेकिन उसमें कृष्णमूर्ति का भी कुछ बहुत हाथ नहीं है। वे जिन नक्षत्रों की छाया में पैदा हुए हैं उन नक्षत्रों की सीधी सूचना है की वे किसी संस्था में भी डिस्ट्रक्टिव सिद्ध होंगे। किसी भी संस्था के भीतर वे विघटनकारी सिद्ध होंगे।

 

भविष्य एकदम अनिश्चित है। हमारा अज्ञान भरी है। भविष्य मैं हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता। हम अंधे हैं। भविष्य का हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता है इसलिए हम कहते है कि निश्चित नहीं है। लेकिन भविष्य में दिखाई पड़ने लगे और ज्योतिष भविष्य में देखने की प्रक्रिया है!           

 

तो ज्योतिष सिर्फ इतनी ही बात नहीं है कि ग्रह-नक्षत्र क्या कहते है? उनकी गणना क्या कहती है ? यह तो सिर्फ ज्योतिष का एक डाइमेन्शन, एक आयाम है। फिर भविष्य को जानने के और आयाम भी है। मनिष्य के हाट पर खिंची हुई रेखाए है, मनुष्य के माथे पर खिंची हुई रेखाए हैं, मनुष्य के पैर पर खिंची हुई रेखाए हैं। पर ये भी बहुत ऊपरी हैं। मनुष्य के शरीर मैं छिपे हुए चक्र हैं उन सब चक्रों का अलग-अलग संवेदन है। उन सब चक्रों की प्रतिपल अलग-अलग गति है, फ्रीकवेंसीहै। उनकी जांच है। मनुष्य के पास छिपा हुआ अतीत का पूरा संस्कार-बीज है।