Osho Astrology Part First (IV)

Osho Astrology Part First (IV)

पर विज्ञान बहुत धीमी गति से चलता है। और ठीक है, वैज्ञानिक होने के लिए उतनी धीमी गति ठीक है। जब तक तथ्य पूरी तरह सिद्ध न हों जाएं तब तक इंच भी आगे सरकना उचित नहीं है। प्रोफेट्स, पैगंबर तो छलांगें भर लेते हैं। वे हजारों-लाखों साल बाद जो तय होगी, उसको कह देते हैं। विज्ञान तो एक-एक इंच सरकता है। और प्राइमरी स्कूल के बच्चे के दिमाग में जो बात आ सके, वही बात! वह बात नहीं जो कि प्रोफेट्स और विजनरीज़, सपने देखने वाले लोग दूर-दूर की चीजें देख लेते हैं उनकी समझ में आ सके, उतनी बात। नहीं, उससे विज्ञान का उतना प्रयोजन नहीं है। 

 

ज्योतिष मूलतः चूंकि भविष्य की तलाश है, और विज्ञान चूंकि मूलतः अतीत कि तलाश है। विज्ञान इस बात की खोज है कि कॉज़ क्या है, कारण क्या है? और ज्योतिष इसी बात की खोज है कि इफेक्ट क्या होगा, परिणाम क्या होगा? इन दोनों के बीच बड़ा भेद है। लेकिन फिर भी विज्ञान को रोज-रोज अनुभव होता है, और कुछ बातें जो अनहोनी लगती थी, लगती थीं कभी सही नहीं हों सकती, वे सही होती हुई मालूम पड़ती हैं। 

 

जैसा मैंने पीछे आपको कहा, अब वैज्ञानिक इसको स्वीकार कर लिए हैं कि प्रत्येक व्यक्ति आपने जन्म के साथ बिल्ट-इन आपने व्यक्तित्व लेकर पैदा होता है।  इसको पहले वे नहीं मानने को राजी थे। ज्योतिष इससे सदा से कहता रहा है। जैसे समझें एक बीज है, आम का बीज है। आम के बीज के भीतर किसी न किसी रूप में, जब हम आम के बीज को बो देंगे तो जो वृक्ष पैदा होता है, उसका बिल्ट-इन प्रोग्राम होना चाहिए, उसका ब्लू-प्रिंट होना चाहिए। नहीं तो यह आम का बीज बेचारा, न कोई विशेषज्ञों की सलाह लेता है, न किसी यूनिवर्सिटी में शिक्षा पता है, यह आम के वृक्ष को कैसे पैदा कर लेता है। फिर इसमें वैसे ही पत्ते लग जाते हैं, फिर इसमें वैसे ही आम लग जाते हैं। इस बीज की गुठली के भीतर छिपा हुआ कोई पूरा का पूरा प्रोग्राम चाहिए। नहीं तो बिना प्रोग्राम के यह बीज क्या कर पाएगा? इसके भीतर सब मौजूद चाहिए। जो भी वृक्ष में होगा वह कहीं न कहीं छिपा ही होना चाहिए। हमें दिखाई नहीं पड़ता, काट-पीट कर हम देख लेते हैं, कहीं दिखाई नहीं पड़ता । लेकिन होना तो चाहिए ही। अन्यथा आम के बीज से फिर नीम निकल सकती थी। भूल-चूक हों जाती। लेकिन कभी भूल होती नहीं दिखाई पड़ती। वह आम ही निकल आता है। सब रिपीट हों जाता है, फिर वही पुनरुक्त कर जाता है। 

 

इस छोटे से बीज में अगर सारी की सारी सूचनाएं छिपी हुई नहीं हैं कि इस बीज को क्या करना है-कैसे अंकुरित होना है, कैसे पत्ते, कैसी शाखाएं कितना बड़ा वृक्ष, कितनी उम्र का वृक्ष, कितना ऊंचा उठेगा-यह सब इसमें छिपा होना चाहिए। कितने फल लगेंगे, कितने मीठे होंगे, पकेंगे कि नहीं पकेंगे-यह सब इसके भीतर छिपा होना चाहिए। अगर आम के बीज के भीतर यह सब छिपा है तो आप जब मां के पेट में आते हैं तो आपके बीज में सब छिपा नहीं होगा ? 

 

अब वैज्ञानिक स्वीकार करते हैं कि आंख का रंग छिपा होगा, बाल का रंग छिपा होगा, शरीर की ऊंचाई छिपी होगी, स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य की संभावनाएं छिपी होंगी, बुद्धि का अंक छिपा होगा। क्योंकि इसके सिवाय कोई उपाय नहीं है कि आप विकसित कैसे होंगे; आपके पास प्रोग्राम चाहिए। कोई हड्डी कैसे हाथ बन जाएगी, कोई हड्डी कैसे पैर बन जाएगी! चमड़ी का एक हिस्सा आंख बन जाएगा, एक कण बन जाएग। एक हड्डी सुनने लगेगी, एक हड्डी देखने लगेगी। यह सब कैसे होगा ? 

 

 वैज्ञानिक पहले कहते थे, सब संयोग है। लेकिन 'संयोग' शब्द बहुत अवैज्ञानिक मालूम पड़ता है। संयोग का मतलब है चांस। तो फिर कभी पेअर देखने लगे और कभी हाथ सुनने लगे। पर इतना संयोग नहीं मालूम पड़ता! इतना व्यवस्थित मालूम पड़ता है! ज्योतिष ज्यादा वैज्ञानिक बात कहता है। ज्योतिष कहता है कि सब बीज को उपलब्ध है। हम अगर बीज को पढ़ पाएं, अगर हम डिकोड कर पाएं, अगर हम बीज से पूछ सकें कि तेरे इरादे क्या हैं, तो हम आदमी के बाबत घोषणाएँ कर सकते हैं!  

 

वृक्षों के बाबत तो वैज्ञानिक घोषणा करने लगे हैं। बीस साल में आदमी के बाबत बहुत सी घोषणाएं वे करने लगेंगे। और अब तक हम सब समझते रहे कि सुपरस्टीटस है ज्योतिष, अगर घोषणा विज्ञान करेगा तो यह ज्योतिष हो जाएगा। विज्ञान घोषणा करने लगेगा। 

 

बहुत पुराने ज्योतिष, ज्योतिष का पुराने से पुराने इजिप्शियन एक ग्रंथ है, जिसको पाइथागोरस ने पढ़ कर और यूनान में ज्योतिष का पहुंचाया। वह ग्रंथ कहता है: काश, हम सब जान सकें, तो भविष्य बिलकुल नहीं है। चूंकि हम सब नहीं जानते, कुछ ही जानते है, इसलिए जो हम नहीं जानते, वह भविष्य बन जाता है। हमें कहना पड़ता है, शायद ऐसा हो! क्योंकि बहुत कुछ है जो अनजाना है। अगर सब जाना हुआ हो तो हम कह सकते हैं, ऐसा ही होगा। फिर इसमें रत्ती भर फर्क नहीं होगा।  

 

आदमी के बीज में भी अगर सब छिपा है आज मैं जो बोल रहा हूं, किसी न किसी रूप मैं मेरे बीज में यह संभावना होनी चाहिए थी। अन्यथा मैं यह कैसे बोलता? अगर किसी दिन यह संभावना हो सकी और आदमी के बीज का देख सके, तो मेरे बीज देख कर, मैंक्या बोल सकूंगा जीवन में, उसकी घोषणा की जा सकती थी। क्या हो संकूगा,क्या नहीं हो संकूगा, क्या बनूंगा, क्या नहीं बनूंगा, क्या घटित होगा, उस सबकी सूचना हो सकती थी। कोई आश्चर्य नहीं है कि हम आज नहीं कल आदमी के बीज में झांकने में समर्थ हो जाएं।  

 

जन्म-कुंडली या होरोस्कोप उसका ही टटोलना है। हजारों वर्ष से हमारी कोशिश यही है की जो बच्चा पैदा हो रहा है वह क्या हो सकेगा? हमें कुछ तो अंदाज मिल जाए! तो शायद हम उसे सुविधा दे पाएं। शायद हम उससे आशाऐं बांध पाएं। जो होने वाला है, मुल्ला नसरुद्दीन ने आपने जीवन के अंत में कहा है की मैं सदा दुखी था; फिर एक दिन मैं अचानक सुखी हो गया। गांव भर के लोग चकित हो गए की जो आदमी सदा दुखी था और जो आदमी सदा हर चीज का अंधेरा पहलू देखता था, वह अचानक प्रसत्र कैसे हो गया! जो हमेशा पेसिमिस्ट था, जो हमेशा देखता था कि कांटे कहां-कहां हैं!  

 

एक बार नसरुद्दीन के बगीचे में बहुत अच्छी फसल आ गई। सेव बहुत लगे, ऐसे कि वृक्ष लद गए! तो पड़ोस के एक आदमी ने पूछा-सोचा उसने कि अब तो नसरुद्दीन कोई शिकायत न कर सकेगा-कहा कि इस बार तो फसल ऐसी है कि सोना बरस जाएगा, क्या खयाल है नसरुद्दीन! नसरुद्दीन ने बड़ी उदासी से कहा कि और सब तो ठीक है, लेकिन जानवरों को खिलने के लिए सड़े सेव कहां से लाओगे? सब सेव अच्छे हैं, कोई सड़ा हुआ ही नहीं! एक मुसीबत है। 

 

वह आदमी एक दिन अचानक प्रसन्न हो गया तो गांव के लोगों को हैरानी हुई। गांव के लोगों ने पूछा कि तुम प्रसन्न! क्या राज है? तो नसरुद्दीन ने कहा : आई हैव लर्न्ट टू कोआपरेट विद दि इनएवीटेबल। वह जो अनिवार्य है, उसके साथ सहयोग करना सीख गया। बहुत दिन लड़ कर देख लिया। अब मैंने यह तय कर लिया है कि जो होना है, होना है! अब मैं सहयोग करता हूं इनएवीटेबल के साथ। वह जो अनिवार्य है उसके साथ अब मैं सहयोग करता हूं। अब दुख का कोई कारण न रहा। अब मैं सुखी हूं।   

 

ज्योतिष बहुत बातों की खोज थी। उसमें जो अनिवार्य है, उसके साथ सहयोग। वह जो होने ही वाला है, उसके साथ व्यर्थ का संघर्ष नहीं। जो नहीं होने वाला है, उसकी व्यर्थ की मांग नहीं, उसकी आकांक्षा नहीं! ज्योतिष मनुष्य को धार्मिक बनाने के लिए, तथाता में ले जाने के लिए, परम स्वीकार में ले जाने के लिए उपाय था। उसके बहु आयाम हैं। 

 

तो हम धीरे-धीरे एक-एक आयाम पर बात करेंगे। आज तो इतनी बात, कि जगत एक जीवंत शरीर है, आर्गेनिक यूनिटी है। उसमें कुछ भी अलग-अलग नहीं है; सब संयुक्त है। दूर से दूर जो ही वह भी निकट से जुड़ा है; आजुड़ा कुछ भी नहीं है। इसलिए कोई इस भ्रांति में न रहे कि वह आइसोलेटेड आइलैंड है। कोई इस भ्रांति में न रहे कि कोई एक द्वीप है छोटा सा अलग-थलग।   

 

नहीं, कोई अलग-थलग नहीं है, सब संयुक्त है। और हम पुरे समय एक-दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं और एक-दूसरे से प्रभावित हो रहे हैं। सड़क पर पड़ा हुआ पत्थर भी, जब आप उसके पास से गुजरते हैं तो आपकी तरफ अपनी किरणें फेंक रहा हैं। फूल भी फेंक रहा हैं। और आप भी ऐसे ही नहीं गुजर रहे हैं, आप भी  अपनी किरणें फेंक रहे हैं। मैंने कहा कि चाँद-तारों से हम प्रभावित होते हैं। ज्योतिष का दूसरा और गहरा खयाल हैं कि चांद-तारे भी हमसे प्रभावित होते हैं। क्योकि प्रभाव कभी भी एकतरफा नहीं होता। जब कभी बुद्ध जैसा आदमी जमीन पर पैदा होता हैं तो चांद यह न सोचे कि चांद पर उनकी, बुद्ध कि, वजह से कोई तूफान नहीं उठते, कि बुद्ध की वजह से चांद पर कोई तूफान शांत नहीं होते! अगर सूरज पर धब्बे आते हैं और सूरज पर अगर तूफान उठते हैं और जमीन पर बीमारियां फ़ैल जाती हैं, तो जब जमीन पर बुद्ध जैसे व्यक्ति पैदा होते हैं और शांति कि धारा बहती हैं और ध्यान का गहन रूप पृथ्वी पर पैदा होता हैं तो सूरज पर भी तूफान फैलने में कठिनाई होती हैं। सब संयुक्त हैं!  

 

एक छोटा सा घास का तिनका भी सूरज को प्रभावित करता हैं और सूरज भी घास के तिनके को प्रभावित करता हैं। न तो घास का तिनका इतना छोटा हैं कि सूरज कहे कि तेरी हम फिकर नहीं करते और न सूरज इतना बड़ा हैं कि यह कह सके कि घास का तिनका मेरे लिए क्या कर सकता हैं। जीवन संयुक्त हैं! यहां छोटा-बड़ा कोई भी नहीं हैं, एक आर्गेनिक यूनिटी हैं-एकात्म इस एकात्म का बोध अगर आए खयाल में तो ही ज्योतिष समझ में आ सकता है, अन्यथा ज्योतिष समझ में नहीं आ सकता।

      तो एक तो मैंने यह बात आज कहीकल और आयामों पर हम धीरे-धीरे बात करेंगे।