Osho Astrology part First (II)

Osho Astrology part First (II)

पैरासेलीसस कहता था, यह व्याख्या गलत है |स्वास्थ्य की पॉजिटिव डेफिनिशन होनी चाहिए | पर उस पॉजिटिव डेफिनिशन को ,उस विधायक व्याख्या को कहां से पकङेंगें ?तो पैरासेलीसस कहता था , जब तक हम तुम्हारे अंतनिर्हित संगीत को न जान लें - वही तुम्हारा स्वास्थ्य है - तब तक हम ज्यादा से ज्यादा तुम्हारी बीमारियों से तुम्हारा छुटकारा करवा सकते हैं |लेकिन हम एक बीमारी से तुम्हे छुड़ाएंगे और तुम दूसरी बीमारी को तत्काल पकड़ लोगे | क्योंकि  तुम्हारे भीतरी संगीत के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं किया जा सका | असली बात तो वही थी कि तुम्हारा भीतरी संगीत स्थापित हो जाए | 

 

इस सम्बन्ध में -पैरासेलीसस को हुए  तो कोई पांच सौ वर्ष होते हैं, उसकी बात भी खो गई थी - लेकिन अब पिछले बीस वर्षों में , उन्नीस सौ पचास के बाद दुनिया में ज्योतिष का पुनर्विभार्व हुआ हैं | और  आपको जान कर हैरानी होगी कि कुछ नये विज्ञानं पैदा हुए हैं जिनके सम्बन्ध में कुछ आपसे कह दूँ , तो फिर पुराने विज्ञानं को समझना आसान हो जाएगा | उन्नीस सौ पचास में एक नई साइंस  का जन्म हुआ | उस साइंस का नाम हैं : कॉस्मिक केमिस्ट्री ,ब्रहा -रसायन | उसको  जन्म देने वाला आदमी है : जियॉजारजी  जिऑरडी | यह आदमी इस सदी के कीमती से कीमती थोड़े से आदमियों में एक है | इस आदमी ने वैज्ञानिक आधारों पर प्रयोगशालाओं  में अनंत प्रयोगों को करके यह सिद्ध किया है की जगत ,पूरा जगत ,एक आर्गौनिक ुनिटी है | पूरा जगत एक शरीर हैं | 

 

और अगर मेरी अंगुली बीमार पड़ जाती है तो मेरा पूरा शरीर प्रभावित होता है | शरीर का अर्थ होता है की टुकड़े अलग -अलग नहीं हैं , संयुक्त हैं ,जीवंत रूप से इकठे हैं | अगर मेरी आँख में तकलीफ होती है तो मेरे पैर का अंगूठा भी अनुभव करता है | और अगर मेरे पैर को चोट लगती है तो मेरे ह्रदय को भी खबर मिलती है | और अगर मेरा मस्तिष्क रुग्ण हो जाता है तो मेरा शरीर पूरा का पूरा बेचैन हो जाएगा | और अगर मेरा पूरा शरीर नष्ट कर दिया जाए तो मेरे मस्तिष्क को खड़े होने के लिए जगह मिलनी मुश्किल हो जाएगी | मेरा शरीर एक आर्गेनिक यूनिटी है- एक एकता है जीवंत | उसमे कोई भी एक चीज को छुओ तो सब प्रवाहित होता है, सब प्रवाहित हो जाता हैं | 

 

कॉस्मिक केमिस्ट्री कहती है की पूरा ब्रह्मंड एक शरीर है | उसमे कोई भी चीज अलग-अलग नहीं है, सब संयुक्त है | इसलिए कोई तारा कितनी ही दूर क्यों न हो, वह भी जब बदलता है तो हमारे ह्रदय की गति को बदल जाता है | और सूरज चाहे कितने ही फासले पर क्यों न हो, जब वह ज्यादा उत्तप्त होता है तो हमारे खून की धाराएं बदल जाती हैं | हर ग्यारह वर्षों में | 

 

पिछली बार जब सूरज पैर ज्यादा गतिविधि चल रही थी और अग्नि की विस्फोट चल रहे थे, तो एक जापानी चिकित्सक तोमातो बहुत हैरान हुआ | वह चिकित्सक स्त्रियों की खून पर निरंतर काम कर रहा था बीस वर्षों से | स्त्रियों की खून की एक विशेषता है जो पुरुषों क्र खून की नहीं है | उनके मासिक धर्म की समय उनका खून पतला हो जाता है | और पुरुष का खून पुरे समय एक सा रहता है | स्त्रियों का खून मासिक धर्म की समय पतला हो जाता है, या गर्भ जब पेट में होता हैं तब उनका खून पतला हो जाता है | पुरुष और स्त्री की खून में एक बुनियादी फर्क तोमातो अनुभव कर रहा था | 

 

लेकिन जब सूरज पर बहुत जोर से तूफान चल रहे थे आणविक शक्तियों की-हर ग्यारह वर्ष में चलते हैं-तो वह चकित हुआ की पुरुषों कब खून भी पतला हो जाता है | जब सूरज पर आणविक तूफान चलता है तब पुरुष का खून भी पतला हो जाता है | यह बड़ी नई घटना थी, यह इसके पहले कभी रिकॉर्ड नहीं की गयी थी की पुरुष की खून पर सूरज पर चलने वाले तूफान का कोई प्रभाव पड़ेगा | और अगर खून पर प्रभाव पड़ सकता है तो फिर किसी भी चीज पर प्रभाव पड़ सकता  हैं |  

 

 एक दूसरा अमरीकन विचारक है , फ्रेंक ब्राउन | वह अंतरिक्ष यात्रियों की लिए सुविधाएं जुटाने का काम करता रहा है | उसकी आधी जिंदगी , अंतरिक्ष में जो मनुष्य यात्रा करने जाएंगे उनको तकलीफ न हो , इसके लिए काम करने की रही है | सबसे बड़ी विचारणीय बात यही थी की पृथ्वी को छोड़ते ही अंतरिक्ष में न मालूम कितने प्रभाव होंगे , न मालूम कितनी धाराएं होंगी रेडिएशन की , किरणों की - वे आदमी पर क्या प्रभाव करेंगी ? 

 

लेकिन दो हजार साल से ऐसा समझा जाता रहा है अरस्तु के बाद , पश्चिम में ,कि अंतरिक्ष शून्य है , वहां कुछ है ही नहीं | दो सौ मील कि बाद पृथ्वी पर हवाएं समाप्त हो जाती हैं , और  फिर अंतरिक्ष शून्य है | लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों की खोज  ने सिद्ध किया कि वह बात गलत है | अंतरिक्ष  शून्य  नहीं है , बहुत भरा हुआ हैं | और न तो शून्य हैं , न मर्त है ;बहुत जीवंत है | सच तो यह है कि पृथ्वी की दो सौ मील की हवाओं की पर्तों सारे प्रभावों को हम तक आने से रोकती हैं | अंतरिक्ष में तो अद्भुत प्रवाहों की धाराएं बहती रहती हैं | उनको आदमी सह पाएगा या नहीं ?          

 

तो आप जान कर हैरान होंगे और हसेंगे भी कि आदमी को भेजने के पहले ब्राउन ने आलू भेजे अंतरिक्ष में | क्योंकि ब्राउन का कहना है की आलू और आदमी  में बहुत भीतरी फर्क नहीं है | अगर आलू सड़ जाएगा तो आदमी नहीं बच सकेगा ;और अगर आलू बच सकता है तो ही आदमी बच सकेगा |आलू बहुत मजबूत प्राणी है | और आदमी तो बहुत संवेदनशील है | अगर आलू भी नहीं बच सकता अंतरिक्ष में और सड़  जाएगा तो आदमी के बचने का कोई उपाय नहीं है | अगर आलू लौट  आता है जीवंत , मरता नहीं है , और उसे जमीन में बोने पर अंकुर निकल आता है , तो फिर आदमी को भेजा जा सकता हैं | तब भी डर है कि आदमी सह पाएगा या नहीं |

 

इससे एक और हैरानी की बात ब्राउन ने सिद्ध की कि आलू जमीन के भीतर पड़ा हुआ, या कोई भी बीज जमीन के भीतर पड़ा हुआ भी बढ़ता है सूरज के ही सम्बन्ध में ! सूरज ही उसे जगाता, उठाता है | उसके अंकुर को पुकारता और ऊपर उठाता है | 

 

ब्राउन एक दूसरे शास्त्र का अन्वेषक है | और उस शास्त्र को अभी ठीक -ठीक नाम मिलना शुरू हो रहा है | लेकिन अभी उसे कहते हैं: प्लेनेटरी हेरिडिटी , उपग्रही वंशानुक्रम |अंग्रेजी में शब्द का है ,' हॉरॉस्कोप |' वह  यूनानी हॉरोस्कोप का रूप है | हॉरोस्कोप , यूनानी शब्द का अर्थ होता है : मैं देखता हूँ जन्मते हुए ग्रह को | शब्द का अर्थ होता है |

 

असल  में जब एक बच्चा पैदा होता है तब उसी समय पृथ्वी के चारों ओर क्षितिज पर अनेक नक्षत्र जन्म लेते हैं , उठते हैं | जैसे सूरज उठता है सुबह | जैसे सुबह सूरज उगता है , साँझ डूबता है , ऐसे ही चौबीस घंटे अंतरिक्ष में नक्षत्र उगते हैं और डूबते हैं | जब एक बच्चा पैदा हो रहा है - समझें सुबह छह बजे बच्चा पैदा हो रहा है - वही वक्त सूरज भी पैदा हो रहा है | उसी वक्त ओर  कुछ नक्षत्र पैदा हो रहे हैं , कुछ नक्षत्र डूब रहे हैं | कुछ नक्षत्र ऊपर हैं , कुछ नक्षत्र उतार पर चले गए, कुछ नक्षत्र चढ़ाव पर  हैं | यह बच्चा जबअ पैदा हो रहा हैं तब अंतरिक्ष की ,अंतरिक्ष में नक्षत्रों की एक स्थिति हैं | 

 

अब तक ऐसा समझा जाता था , और अभी भी अधिक लोग जो बहुत गहराई से परिचित नहीं हैं वे ऐसा ही सोचते  हैं , की चाँद - तारों से आदमी के जन्म का क्या लेना -देना ! चाँद - तारे कहीं भी हों, इससे एक गावं में बच्चा पैदा हो रहा हैं ,इससे क्या फर्क पड़ेगा !

 

फिर वे यह भी कहते हैं कि एक ही बच्चा पैदा नहीं होता, एक तिथि में  एक नक्षत्र की स्थिति में लाखों बच्चे पैदा होते हैं | उनमे से एक प्रेजिडेंट  बन जाता हैं किसी मुल्क का , बाकी तो नहीं बन पाते | एक उनमें से सौ वर्ष का होकर मरता हैं , दूसरा दो दिन का ही मर जाता हैं | एक उनमें से बहुत बुद्धिमान होता हैं और एक निर्बुद्धि रह जाता हैं |

 

तो साधारण देखने पर पता चलता हैं की इन ग्रह - नक्षत्रों की स्थिति का किसी के बच्चे के पैदा होने से , हॉरोस्कोप से  क्या सम्बन्ध हो सकता हैं ? यह तर्क इतना सीधा और साफ़ मालूम होता हैं की ये चाँद - तारे एक बच्चे के जन्म की चिंता भी नहीं करते हैं | और फिर एक बच्चा ही पैदा नहीं होता, एक स्थिति में लाखों बच्चे पैदा होते हैं, पर लाखों बच्चे एक से नहीं होतें | इन तर्को से ऐसा लगने लगा था - तीन सौ वर्षो से ये तर्क दिए  जा रहें - कि कोई सम्बन्ध नक्षत्रों से व्यक्ति के जन्म का नहीं हैं |

 

लेकिन ब्राउन , और इन सारे लोगों की , तोमातो, इन सबकी खोज का एक अद्भुत परिणाम हुआ हैं | और वह यह कि ये वैज्ञानिक कहते  हैं , अभी हम यह तो नहीं कह सकते  कि व्यक्तिगत रूप से कोई बच्चा प्रभावित होता होगा , लेकिन अब हम यह पक्के रूप से कह सकते हैं कि जीवन प्रभावित होता हैं | एक बात , व्यक्तिगत रूप से बच्चा प्रभावित होता होगा , हम अभी नहीं कह सकते हैं , लेकिन जीवन निश्चित रूप से प्रभावित होता हैं | और अगर जीवन प्रभावित होता हैं तो हमारी खोज जैसे -जैसे सूक्ष्म होगी , वैसे -वैसे हम पाएंगे कि व्यक्ति भी प्रभावित होता हैं |

 

इसमें एक बात और खयाल में ले लेनी जरुरी हैं | जैसा सोचा जाता रहा हैं - वह तथ्य नहीं हैं - ऐसा सोचा जाता रहा हैं कि ज्योतिष विकसित विज्ञान नहीं हैं | प्रारम्भ उसका हुआ और फिर वह विकसित नहीं हो सका | लेकिन मेरे देखे स्थिति  उलटी हैं | ज्योतिष किसी सभ्यता के द्वारा  बहुत बड़ा विकसित विज्ञान हैं , फिर वह सभ्यता खो गई और हमारे हाथ में ज्योतिष के अधूरे सूत्र रह गए | ज्योतिष कोई नया  विज्ञान नहीं हैं जिसे विकसित होना हैं , बल्कि कोई विज्ञान हैं जो पूरी तरह विकसित हुआ था और फिर जिस सभ्यता ने उसे विकसित किया वह खो गई | और सभ्यताए रोज आती हैं और खो जाती हैं फिर उनके द्वारा विकसित चीजे भी अपने मौलिक आधार खो देती हैं , सूत्र भूल  जाते हैं , उनकी आधारशिलाएं खो जाती हैं |

 

विज्ञान आज इसे स्वीकार करने के निकट पहुंच रहा है की जीवन प्रभावित होता हैं | और एक छोटे बच्चे के जन्म के समय उसके चिन्त की स्थिति ठीक वैसी होती है जैसे बहुत सेंसिटिव फोटो प्लेट की | इस पर दो-तीन बातें और ख्याल में ले लें, ताकि समझ में आ सके की जीवन प्रभावित होता है | और अगर जीवन प्रभावित होता है तो ही ज्योतिष की कोई संभावना निर्मित होती है, अन्यथा निर्मित नहीं होती | जुड़वा बच्चों को समझने की थोड़ी कोशिश करें |

 

तो तरह के जुड़वा बच्चे होते है | एक तो जुड़वां बच्चे होते हैं जो एक ही अंडे से पैदा होते है | और दूसरे जुड़वां बच्चे होते हैं जो होते तो जुड़वां हैं लेकिन दो अंडो से पैदा होते हैं | मां के पेट में दो अंडे होते हैं, दो बच्चे पैदा होते है | कभी-कभी एक ही अंडा होता है और एक अंडे के भीतर दो बच्चे होते है | एक अंडे से जो दो बच्चे पैदा होते हैं वे बड़े महत्वपूर्ण हैं | क्योकि उनके जन्म का क्षण बिलकुल एक होता है | दो अंडो से जो बच्चे पैदा होते हैं उन्हें जुडंवा हम कहते जरूर हैं, लेकिन उनके जन्म का क्षण एक नहीं होता  

 

और एक बात समझ लें कि जन्म दोहरी बात है | जन्म का पहला अर्थ तो है गर्भधारण | ठीक जन्म तो उस दिन होता है जिस दिन मां के पेट मे गर्भ आरोपित होता है- ठीक जन्म ! जिसको आप जन्म कहते है वह नंबर दो का जन्म है जब बच्चा मां के पेट से बाहर आता है | अगर हमें ज्योतिष की पूरी खोज-बीन करनी हो- जैसे की हिन्दुओ नई की थी, अकेले हिन्दुओ ने की थी और उसके बड़े उपयोग किए थे-तो असली सवाल यह नहीं है की बच्चा कब पैदा होता है, असली सवाल यह है कि बच्चा कब गर्भ में प्रांरभ करता है अपनी यात्रा, गर्भ कब निर्मित होता है !  

 

क्योंकि ठीक जन्म वही है | इसलिए हिन्दुओ ने तो यह भी तय किया था की ठीक जिस भांति के बच्चे को जन्म देना हो उस भांति के ग्रह-नक्षत्र मे यदि संभोग किया जाए और गर्भधारण हो जाए तो उस तरह का बच्चा पैदा होगा |

 

अब इसमें मैं थोड़ा पीछे आपको कुछ कहूंगा, क्योकि इस संबंध में भी काफी काम इधर हुआ है और बहुत सी बाते साफ़ हुई है | साधारणत: हम सोचते है की एक बच्चा सुबह छह बजे पैदा होता है, तो छह बजे पैदा होता है इसलिए छह बजे प्रभात में जो नक्षत्रों की स्थिति होती है उससे प्रभावित होता है | लेकिन ज्योतिष को जो गहरा जानते हैं वे कहते हैं कि वह छह बजे  पैदा होने की वजह से ग्रह -नक्षत्र उस पर प्रभाव डालते हैं , ऐसा नहीं !वह जिस तरह के प्रभावों के बीच पैदा होना चाहता है उस घडीं और नक्षत्र को जन्म के लिए चुनता है | यह बिलकुल भिन्न बात है | बच्चा जब पैदा हो रहा है, ज्योतिष की गहन खोज करने वाले लोग कहंगे की वह अपने ग्रह -नक्षत्र चुनता है की कब उसे पैदा होना है |

 

और गहरे जाएंगे तो वह अपना गर्भधारण भी चुनती है | प्रत्येक आत्मा अपना गर्भधारण चुनती है कि कब उसे गर्भ स्वीकार करना है, किस क्षण में | क्षण छोटी घटना नहीं है | क्षण का अर्थ है कि पूरा विश्व उस क्षण में कैसा है! और उस  उसे गर्भ  क्षण में पूरा विश्व किस तरह की संभावनाओं के द्वार खोलता है |   

 

जब एक अंडे में दो बच्चे एक साथ गर्भधारण लेते हैं तो उनके गर्भधारण का क्षण एक ही होता है और उनके जन्म का क्षण भी एक होता है | अब यह बहुत मजे की बात है की एक ही अंडे से पैदा हुए दो बच्चों का जीवन इतना एक जैसा होता है , इतना एक जैसा होता है की यह कहना मुश्किल है की जन्म का प्रभाव नहीं डालता | एक अंडे से पैदा हुए दो बच्चे , उनका आई  `क्यू ; उनका बुद्धि-माप करीब -करीब बराबर होता है | और जो थोड़ा सा भेद दीखता है , वे जो जानते हैं वे कहते हैं की वह हमारी मेजरमेंट की गलती के कारण है। अभी तक हम ठीक मापदंड विकसित नहीं कर पाए हैं जिनसे हम बुद्धि का अंक नाप सकें। थोड़ा सा जो भेद कभी पड़ता है वह हमारे तराजू की भूल -चूक है। 

 

अगर एक अंडे से पैदा हुए दो बच्चों को बिलकुल अलग -अलग पला जाए तो भी उनके बुद्धि - अंक में कोई फर्क नहीं पड़ता। एक को हिंदुस्तान में पाला जाए और एक को चीन में पाला जाए और कभी एक -दूसरे को पता भी न चलने दिया जाए! ऐसी कुछ घटनाएं घटी हैं जब दोनों बच्चे अलग -अलग पड़े, बड़े हुए। लेकिन उनके बुद्धि - अंक में कोई फर्क नहीं पड़ता।     

 

बड़ी हैरानी की बात है , बुद्धि - अंक तो ऐसी चीज है कि जन्म की पोटेंशियलिटी  से जुडी  है।  लेकिन वह जो चीन में जुड़वाँ बच्चा है एक ही अंडे का , जब उसको  जुकाम होगा , तब जो भारत में बच्चा है उसको भी जुकाम हो जाएगा।  आमतौर से एक अंडे से पैदा हुए बच्चे एक ही साल में मरते हैं।  ज्यादा से  ज्यादा उनकी मृत्यु में फर्क तीन महीने का होता है और कम से  कम तीन दिन का ,पर वर्ष  वही होता हैं।  अब तक ऐसा नहीं हो सका कि एक ही अंडे से पैदा हुए दो बच्चों की मर्त्यु के  बीच वर्ष का फर्क पड़ा हो।  तीन महीने  से ज्यादा का फर्क नहीं  पड़ता अगर एक बच्चा मर गया है तो हम मान सकते है कि तीन दिन के बाद और तीन महीने के बीच दूसरा बच्चा मर जाएगा।  इनके रुझान , इनके ढंग , इनके भाव समानांतर होते हैं।  और करीब -करीब ऐसा मालूम पड़ता है की ये दोनों एक ही ढंग से जीते है। एक -दूसरे की कॉपी की भाति होते हैं इनका इतना एक जैसा होना और बहुत सी बातों से सिद्ध होता हैं।

 

हम सबकी चमड़ियाँ अलग - अलग हैं, इंडिविजुअल है। अगर मेरा हाथ टूट जाए और मेरी चमड़ी बदलनी पड़े तो आपकी चमड़ी मेरे हाथ के काम नहीं आएगी। मेरे ही शरीर की चमड़ी उखाड़ कर लगानी पड़ेगी। इस पूरी जमीन पर कोई आदमी नहीं खोजा जा सकता जिसकी चमड़ी मेरे काम आ जाए। 

 

क्या बात है? फिजियोलाजिस्ट से हम पूछें की दोनों की चमड़ी की बनावट में कोई भेद हैं? चमड़ी के रसायन में कोई भेद हैं? चमड़ी में जो तत्व निर्मित करते हैं चमड़ी को, उसमें कोई भेद हैं ?

 

तो कोई भेद नहीं हैं! मेरी चमड़ी और दूसरे आदमी की चमड़ी को अगर हम रख दें एक वैज्ञानिक को जाचं  करने के लिए तो वह यह न बता पाएगा की ये दो आदमियों की चमड़ियाँ हैं।  चमड़ी नहीं बिठाई जा सकती।  मेरा शरीर उसे इंकार कर देता है।  वैज्ञानिक जिसे नहीं पहचान पाते की कोई भेद  है , लेकिन मेरा शरीर पहचानता है।  मेरा शरीर इंकार कर देता है की इसे स्वीकार नहीं करेंगे। 

 

हां, एक ही अंडे से पैदा हुए दो बच्चो की चमड़ी ट्रांसप्लांट हो सकती है सिर्फ! एक-दूसरे की चमड़ी को एक-दूसरे पर बिठाया जा सकता है, शरीर इंकार नहीं करेगा। क्या कारण होगा? क्या वजह होगी? अगर हम कहें, एक ही मां-बाप के बेटे हैं। तो दो भाई भी एक ही माँ-बाप के है, उनकी चमड़ी नहीं बदली जा सकती। सिवाय इसके की ये दोनों बेटे एक क्षण में निर्मित हुए हैं और कोई इनमे समानता नहीं है। क्योकि उसी बाप और उसी मां से पैदा हुए दूसरे भाई भी हैं, उन पर चमड़ी काम नहीं करती हैं। उनकी चमड़ी एक-दूसरे पर नहीं बदली जा सकती। सिर्फ इनका बर्थ मोमेंट-बाकी तो सब एक है, वही मां-बाप हैं-सिर्फ एक बात बड़ी भिन है और वह है इनके जन्म का क्षण !

 

क्या जन्म का क्षण इतने महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है कि उम्र भी दोनों की करीब-करीब, बुध्दि-माप करीब-करीब, दोनों की चमड़ियों का ढंग एक सा, दोनों के शरीर के व्यव्हार करने के बात एक सी, दोनों बीमार पड़ते हैं तो एक सी बीमारियों से, दोनों स्वस्थ होते हैं तो एक सी दवाओं से-क्या जन्म का क्षण इतना प्रभावी हो सकता हैं ? 

ज्योतिष कहता रहा है, इससे भी ज्यादा प्रभावी है जन्म का क्षण। 

 

लेकिन आज तक ज्योतिष के लिए वैज्ञानिक सहमति नहीं थी। पर अब सहमति बढ़ती जाती है। इस सहमति में कई नए प्रयोग सहयोगी बने हैं। एक तो, जैसे ही हमने आर्टिफीशियल सैटेलाइट्स, हमने कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़े वैसे ही हमें पता चला की सारे जगत से, सारे ग्रह-नक्षत्रो से, सारे तराओ से निरन्तर अनंत प्रकार की किरणों का जाल प्रवाहित होता है जो पृथ्वी पर टकराता है। और पृथ्वी पर कोई भी ऐसी चीज नहीं है जो उससे अप्रभावित छूट जाए। 

 

हम जानते हैं कि चांद से समुद्र प्रभावित होता हैं। लेकिन हमें खयाल नहीं हैं कि समुद्र में पानी और नमक का जो अनुपात हैं वही आदमी के शरीर में पानी और नमक का अनुपात हैं-दि सेम प्रपोर्शन। और आदमी के शरीर में पैंसठ प्रतिशत पानी हैं; और नमक और पानी का वही अनुपात हैं जो अरब की खाड़ी में हैं। अगर समुद्र का पानी प्रभावित होता हैं चांद से तो आदमी के शरीर के भीतर का पानी क्यों प्रभावित नहीं होगा?

 

अभी इस संबंध में जो खोज-बीन हुई उसमें दो-तीन तथ्य खयाल में ले लेने जैसे हैं, वह यह कि पूर्णिमा के निकट आते-आते सारी दुनिया में पागलपन की संख्या बढ़ती हैं। अमावस के दिन दुनिया में सबसे कम लोग पागल होते हैं, पूर्णिमा के दिन सर्वाधिक। चांद के बढ़ने के साथ अनुपात पागलों का बढ़ना शुरू होता हैं। पूर्णिमा के दिन पागलखानों मे सर्वाधिक लोग प्रवेश करते हैं और अमावस के दिन पागलखानों सी सर्वाधिक लोग बाहर जाते हैं। अब तो इसके स्टैटिसटिक्स उपलब्ध हैं।