ओशो,
मेरे प्रश्न का एक भाग पूरा हो चुका है, तब ओशो के सात्रिध्य में मंदिर, तीर्थ, तिलक-टीके और मूर्ति-पूजा पर चर्चा हो सकी | आज ओशो के श्रीचरणों मे निवेदन करूँगा की हम एक नए विषय पर ओशो से मार्ग-दर्शन चाहेंगे और वह विषय है: ज्योतिष | यह अछूता विषय है, ओशो के श्रीमुख से इस पर कभी चर्चा नहीं हुई है | तो ओशो के श्रीचरणों में पुन: निवेदन करूँगा कि आज ज्योतिष के संबंध में हमारा मार्ग-दर्शन करें |
ज्योतिष शायद सबसे पुराण विषय है और एक अर्थ में सबसे ज्यादा तिरस्कृत विषय भी है | सबसे पुराना इसलिए कि मनुष्य-जाति क्र इतिहास कि जितनी खोज बीन हो सकी है उसमें ज्योतिष, ऐसा कोई भी समय नहीं था, जब मौजूद न रहा हो | जीसस से पच्चीस हजार वर्ष पूर्व सुमेर में मिले हुए हड्डी के अवशेषो पर ज्योतिष के चिन्ह अंकित है | पश्चिम में पुरानी से पुरानी जो खोज-बीन हुई है, वह जीसस से पच्चीस हजार वर्ष पूर्व इन हड्डियों की है, जिस पैर ज्योतिष के चिन्ह और चंद्र कीबे यात्रा के अंकित हैं | लेकिन भारत मे तो बात और भी पुरानी है |
ऋग्वेद मे, पंचानबे हजार वर्ष पूर्व ग्रह-नक्षत्रों ली जैसी स्थिति थी , उसका उल्लेख है | इसी आधार पर लोकमान्य तिलक नेबी यह तय किया था की ज्योतिष नब्बे हजार वर्ष से ज्यादा पुराने तो निशिचत ही होने चाहिए | क्योकि वेद में यदि पंचानबे हजार वर्ष पहले जैसी नक्षत्रो की स्थिति थी उसका उल्लेख है, तो वह उल्लेख इतना पुराना तो होगा ही | क्योकि उस समय जो स्थिति थी नक्षत्रो उसे बाद में जानने का कोई भी उपाय नहीं था | अब हमरे पास ऐसे वैज्ञानिक साधन उपलब्ध हो सके हैं की हम जान सकें अतीत में की नक्षत्रों की स्थिति कब कैसी रही होगी |
ज्योतिष की सर्वाधिक गहरी मान्यताएं भारत में पैदा हुई | सच तो यह है की ज्योतिष के कारण ही गणित का जन्म हुआ | ज्योतिष की गणना के लिए सबसे पहले गणित का जन्म हुआ | और इसीलिए अंकगणित के जो अंक है वे भारतीय हैं, सारी दुनिया की भाषाओं में | एक से लेकर नौ तक जो गणना के अंक हैं वे भारतीय हैं, वे समस्त भाषाओ मे जगत की, भारतीय हैं | और सारी दुनिया मे नौ डिजिट, नौ अंक स्वीकृत हो गए, उसका भी कुल कारण इतना है की वे नौ अंक भारत में पैदा हुए और धीरे धीरे सारे जगत में फैल गए |
जिसे आप अंग्रेजी में नाइन कहते हैं वह संस्कृत के नौ का ही रूपांतरण हैं | जिसे आप एट कहते हैं वह संस्कृत के अष्ट का ही रूपांतरण हैं | एक से लेकर नौ तक जगत की समस्त सभ्य भाषाओं में गणित के जो अंको का प्रचलन हैं वह भारतीय ज्योतिष के प्रभाव में हुआ |
भारत से ज्योतिष की पहली किरणें सुमेर की सभ्यता में पहुंची | सुमेरियंस ने सबसे पहले, ईसा से छह हजार वर्ष पूर्व, पश्चिम के जगत के लिए ज्योतिष का द्वार खोला | सुमेरियंस ने सबसे नक्षत्रों के वैज्ञानिक अध्ययन की आधारशिलाऐं रखीं | उन्होने बड़े ऊँचे, सात सौ फ़ीट ऊंचे मीनार बनाए | और उन मीनारों पर सुमेरियन पुरोहित चौबीस घंटे आकाश का अध्ययन करते थे- दो कारणों से | एक तो सुमेरियंस को इस गहरे सूत्र का पता चल गे था की ली मनुष्य के जगत में जो भी घटित होता हैं, उस घटना का प्रारभिक स्त्रोत नक्षत्रों से किसी न किसी भांति संबंधित हैं |
जीसस से छह हजार वर्ष पहले सुमेरियंस की यह धारणा कि पृथ्वी पर जो भी बीमारी पैदा होती हैं, जो भी महामारी पैदा होती हैं, वह सब नक्षत्रों से संबंधित हैं | अब तो इसके लिए वैज्ञानिक आधार मिल गए हैं | और जो लोग आज के विज्ञान को समझते हैं वे कहते हैं सुमेरियंस ने मनुष्य-जाति का असली इतिहास प्रारंभ किया | इतिहासज्ञ कहते हैं कि सब तरह का इतिहास सुमेर से शुरू होता हैं |
उत्रीस सौ बीस में चीजेवस्की नाम के एक रूसी वैज्ञानिक ने इस बात की खोज-बीन की कि जब भी सूरज पर- सूरज पर हर ग्यारह वर्षो में पीरियाडीकली बहुत बड़ा विस्फोट होता है | सूर्य पर हर ग्यारह वर्ष में आणविक विस्फोट होता हैं और चिजेवस्की ने यह खोज -बीन की कि जब भी सूरज पर ग्यारह वर्षो में आणविक विस्फोट होता हैं तभी पृथ्वी पर युद्ध और क्रांतियों के सूत्रपात होते है | और उसने कोई सात सौ वर्ष के लम्बे इतिहास में सूर्य पर जब भी दुर्घटना घटती है ,तभी पृथ्वी पर दुर्घटना घटती हैं , इसका इतना वैज्ञानिक विश्लेषण किया कि स्टैलिन ने उसे उन्नीस सौ बीस में उठा कर जेल में डाल दिया | वह स्टैलिन के मरने के बाद ही चीजेवस्की छूट सका | क्योंकि स्टैलिन के लिए तो अजीब बात हो गई !मार्क्स का और कम्युनिस्टों का ख्याल है कि पृथ्वी पर जो क्रांतियां होती है उनका कारण मनुष्य के बीच आर्थिक वैभिन्य है और चीजेवस्की कहता है कि क्रांतियों का कारण सूरज पर हुए विस्फोट हैं
अब सूरज पर हुए विस्फोट और मनुष्य के जीवन की गरीबी और अमीरी का क्या सबंध ?अगर चीजेवस्की ठीक कहता है तो मार्क्स की सारी व्याख्या मिटटी मैं चली जाती हैं| तब क्रांतियों का कारण वर्गीय नहीं रह जाता , तब क्रांतियों का कारन ज्योतिषीय हो जाती है चीजेवस्की को गलत तो सिद्ध नहीं किया जा सका,क्योंकि सात सौ साल कि जो गरणा उसने दी थी वह इतनी वैज्ञानिक थी और सूरज में हुए विस्फोटों के साथ इतना गहरा सम्बन्ध उसने पृथ्वी पर घटने वाली घटनाओ का स्थापित किया था कि उसे गलत सिद्ध करना तो कठिन था |लेकिन उसे साइबेरिया में डाल देना आसान था |
स्टैलिन के मर जाने के बाद ही चिजेवस्की को खुश्चेव साइबेरिया से मुक्त कर पाया | इस आदमी के जीवन के कीमती पचास साल साइबेरिया में नष्ट हुए |छूटने के बाद भी वह चार - छह महीने से ज्यादा जीवित नहीं कर रह सका | लेकिन छह महीने में भी वह अपनी स्थापना के लिए और नये प्रमाण इकट्ठे कर गया हैं |पृथ्वी पर जितनी महामारियां फैलती हैं उन सबका सम्बन्ध भी वह सूरज से जोड़ गया हैं ||
सूरज , जैसा हम साधारणता सोचते हैं , ऐसा कोई निष्क्रिय अग्नि का गोला नहीं हैं , अत्यंत सक्रिय हैं | और प्रतिफल सूरज कि तरंगो में रूपांतरण होते रहते हैं | और सूरज कि तरंगों का जरा सा रूपांतरण भी पृथ्वी के प्राणों को कंपित करता है | इस पृथ्वी पर कुछ भी ऐसा घटित नहीं होता जो सूरज पर घटित हुए बिना घटित हो जाता हो | जब सूर्य का ग्रहण होता तो पक्षी जंगलो में गीत गाना चौबीस घंटे पहले से बंद कर देते हैं | पुरे ग्रहण के समय तो सारी पृथ्वी मौन हो जाती हैं , पक्षी गीत गाना बंद कर देते हैं , सारे जंगलों के जानवर भयभीत हो जाते हैं , किसी बड़ी आशंका से पीड़ित हो जाते हैं | बंदर वृक्षों को छोड़ कर नीचे आ जाते हैं भीड़ लगा कर किसी सुरक्षा का उपाय करने लगते हैं और एक आश्चर्य कि बंदर , जो निरंतर बातचीत और शोरगुल में लगे रहते हैं सूर्यग्रहण के वक्त बंदर इतने मौन हो जाते हैं जितने साधु और सन्यासी भी नहीं होते !
चिजेवस्की ने ये सारी कि सारी बातें स्थापित कि हैं | सुमेर में सबसे पहले यह ख्याल पैदा हुआ | उसके बाद स्विस पैरासेलीसस नाम का एक चिकित्सक, उसने एक बहुत अनूठी मान्यता स्थापित की | और वह मान्यता आज नहीं कल सारे मेडिकल साइंस को बदलने वाली सिद्ध होगी | अब तक उस मान्यता पर बहुत जोर नहीं दिया जा सका , क्योंकि ज्योतिष तिरस्कृत विषय हैं - सर्वाधिक पुराना, लेकिन सर्वाधिक तिरस्कृत , यघपि सर्वाधिक मान्य भी |
अभी फ्रांस में पिछले वर्ष गणना की गई तो सैंतालीस प्रतिशत लोग ज्योतिष में विश्वास करते हैं की वह विज्ञान है-फ्रांस में !अमरीका में मौजूद पांच हजार बड़े ज्योतिषी दिन-रात काम में लगे रहते हैं और उनके पास इतने कस्टमर्स हैं कि वे काम निपटा नहीं पाते | करोड़ों डालर अमरीका प्रतिवर्ष ज्योतिषियों को चुकाता हैं | अंदाज है कि सारी पृथ्वी पर कोई अठहत्तर प्रतिशत लोग ज्योतिष में विश्वास करते हैं | लेकिन वे अठहत्तर प्रतिशत लोग सामान्य हैं | वैज्ञानिक, विचारक, बुद्धिवादी ज्योतिष की बात सुन कर ही चौंक जाते हैं |
सी जी जुंग ने कहा है कि तीन सौ वर्षों से विश्वविघालयों के द्वार ज्योतिष के लिए बंद हैं, यघपि आने वाले तीस वर्षों में ज्योतिष तुम्हारे दरवाजों को तोड़ कर विश्वविघालयों में पुन: प्रवेश पाकर रहेगा | पाकर रहेगा प्रवेश इसलिए कि ज्योतिष के संबंध में जो-जो दावे किए गए थे उनको अब तक सिद्ध करने का उपाय नहीं था, लेकिन अब उनको सिद्ध करने का उपाय हैं |
पैरासेलीसस ने एक मान्यता को गति दी और वह मान्यता यह थी कि आदमी तभी बीमार होता है जब उसके और उसके जन्म के साथ जुड़े हुए नक्षत्रों के बीच का तारतम्य टूट जाता है | इसे थोड़ा समझ लेना जरुरी है | उससे बहुत पहले पाइथागोरस ने यूनान में, कोई ईसा से छह सौ वर्ष पूर्व, यानी आज से कोई पच्चीस सौ वर्ष पूर्व, ईसा से छह सौ वर्ष पूर्व पाइथागोरस ने प्लेनेटरी हार्मनी, ग्रहो के बीच एक संगीत का संबंध है, इसके संबंध में एक बहुत बड़े दर्शन को जन्म दिया था |
और पाइथागोरस ने जब यह बात कही थी तब वह भारत और इजिप्ट , इन दो मुल्कों की यात्रा करके वापस लौटा था | और पाइथागोरस जब भारत आया तब भारत बुद्ध और महावीर के विचारों से तीरवता से आप्लावित था | पाइथागोरस हिंदुस्तान से वापस लौट कर जो बातें कहा हैं उसमें उसने महावीर और विशेषकर जैनों के सम्बन्ध में बहुत सी बातें महत्वपूर्ण कहीं हैं | उसने जैनों को जैनॉसॉफिस्ट कह कर पुकारा हैं | सॉफिस्ट का मतलब होता हैं दार्शनिक और जैनों का मतलब तो जैन !तो जैन दार्शनिक को पाइथागोरस ने जैनॉसॉफिस्ट कहा है नग्न रहतें ,यह सारी बात की है |
पाइथागोरस मानता था कि प्रत्येक नक्षत्र या प्रत्येक ग्रह या उपग्रह जब यात्रा करता है अंतरिक्ष में ,तो उसकी यात्रा के कारण एक विशेष ध्वनि पैदा होती है प्रत्येक नक्षत्र की गति एक विशेष ध्वनि पैदा करती है | और प्रत्येक नक्षत्र की अपनी व्यक्यिगत निजी ध्वनि है | और इन सारे नक्षत्रो की ध्वनियों का एक तालमेल है ,जिसे वह विश्व की संगीतबद्धता , हार्मनी कहा था जब कोई मनुष्य जन्म लेता है तब उस जन्म के क्षण में इन नक्षत्रों के बीच जो संगीत की व्यवस्था होती है वह उस मनुष्य के प्राथमिक , सरलतम , संवेदनशील चीत पर अंकित हो जाती है वही उसे जीवन भर स्वस्थ और अस्वस्थ करती है | जब भी वह अपनी उस मौलिक जन्म के साथ पाई गई संगीत -व्यवस्था के साथ तालमेल बना लेता है तो स्वस्थ हो जाता है |और जब उसका तालमेल छूट जाता है तो अस्वस्थ हो जाता है |
पैरासेलीसस ने इस संबंध मैं बड़ा महत्व्पूर्ण काम किया | वह किसी मरीज को दवा नहीं देता था जब तक उसकी जन्म -कुंडली न देख ले | और बड़ी हैरानी की बात है की पैरासेलीसस ने जन्म -कुंडलियां देख कर ऐसे मरीजों को ठीक किया जिनको की चिकित्सक कठिनाई मई पड़ गए थे और ठीक नहीं कर पाते थे | उसका कहना था , जब तक मैं यह न जान लूँ कि यह व्यक्ति किन नक्षत्रों की स्थिति में पैदा हुआ है तब तक इसके अंतसरंगीत के सूत्र को भी पकड़ना संभव नहीं है | और जब तक मैं यह न जान लूँ कि इसके अंतसरंगीत की व्यवस्था क्या है तो इसे कैसे हम स्वस्थ करें ? क्योंकि स्वास्थ का क्या अर्थ है , इसे थोङा समझ लें !
अगर साधारणतः हम चिकित्सक से पूछें की स्वास्थ्य का क्या अर्थ है तो वह इतना ही कहेगा : बीमारी का न होना | पर उसकी परिभाषा निगेटिव है ,नकारत्मक है और यह दुखद बात है की स्वास्थ्य की परिभाषा हमें बीमारी से करना पङे | स्वास्थ्य तो पॉजिटिव चीज है , बिमारी निगेटिव है , नकारात्मक है | स्वास्थ्य तो स्वभाव है , बीमारी तो आक्रमण है | तो स्वास्थ्य की परिभाषा हमें बीमारी से करनी पङे ,यह बात अजीब है | घर में रहने वाले की परिभाषा मेहमान से करनी पङे , तो बात अजीब है | स्वास्थ्य तो हमारे साथ है , बीमारी कभी होती है | स्वास्थ्य तो हम लेकर पैदा होतें हैं , बीमारी उस पर आती है | पर हम स्वास्थ्य की परिभाषा अगर चिकित्सकों से पूछें तो वे यही कह पाते हैं कि बीमारी नहीं है तो स्वस्थ्य हैं |
पैरासेलीसस कहता था, यह व्याख्या गलत है |स्वास्थ्य की पॉजिटिव डेफिनिशन होनी चाहिए | पर उस पॉजिटिव डेफिनिशन को ,उस विधायक व्याख्या को कहां से पकङेंगें ?तो पैरासेलीसस कहता था , जब तक हम तुम्हारे अंतनिर्हित संगीत को न जान लें - वही तुम्हारा स्वास्थ्य है - तब तक हम ज्यादा से ज्यादा तुम्हारी बीमारियों से तुम्हारा छुटकारा करवा सकते हैं |लेकिन हम एक बीमारी से तुम्हे छुड़ाएंगे और तुम दूसरी बीमारी को तत्काल पकड़ लोगे | क्योंकि तुम्हारे भीतरी संगीत के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं किया जा सका | असली बात तो वही थी कि तुम्हारा भीतरी संगीत स्थापित हो जाए |
इस सम्बन्ध में -पैरासेलीसस को हुए तो कोई पांच सौ वर्ष होते हैं, उसकी बात भी खो गई थी - लेकिन अब पिछले बीस वर्षों में , उन्नीस सौ पचास के बाद दुनिया में ज्योतिष का पुनर्विभार्व हुआ हैं | और आपको जान कर हैरानी होगी कि कुछ नये विज्ञानं पैदा हुए हैं जिनके सम्बन्ध में कुछ आपसे कह दूँ , तो फिर पुराने विज्ञानं को समझना आसान हो जाएगा | उन्नीस सौ पचास में एक नई साइंस का जन्म हुआ | उस साइंस का नाम हैं : कॉस्मिक केमिस्ट्री ,ब्रहा -रसायन | उसको जन्म देने वाला आदमी है : जियॉजारजी जिऑरडी | यह आदमी इस सदी के कीमती से कीमती थोड़े से आदमियों में एक है | इस आदमी ने वैज्ञानिक आधारों पर प्रयोगशालाओं में अनंत प्रयोगों को करके यह सिद्ध किया है की जगत ,पूरा जगत ,एक आर्गौनिक ुनिटी है | पूरा जगत एक शरीर हैं |
और अगर मेरी अंगुली बीमार पड़ जाती है तो मेरा पूरा शरीर प्रभावित होता है | शरीर का अर्थ होता है की टुकड़े अलग -अलग नहीं हैं , संयुक्त हैं ,जीवंत रूप से इकठे हैं | अगर मेरी आँख में तकलीफ होती है तो मेरे पैर का अंगूठा भी अनुभव करता है | और अगर मेरे पैर को चोट लगती है तो मेरे ह्रदय को भी खबर मिलती है | और अगर मेरा मस्तिष्क रुग्ण हो जाता है तो मेरा शरीर पूरा का पूरा बेचैन हो जाएगा | और अगर मेरा पूरा शरीर नष्ट कर दिया जाए तो मेरे मस्तिष्क को खड़े होने के लिए जगह मिलनी मुश्किल हो जाएगी | मेरा शरीर एक आर्गेनिक यूनिटी है- एक एकता है जीवंत | उसमे कोई भी एक चीज को छुओ तो सब प्रवाहित होता है, सब प्रवाहित हो जाता हैं |
कॉस्मिक केमिस्ट्री कहती है की पूरा ब्रह्मंड एक शरीर है | उसमे कोई भी चीज अलग-अलग नहीं है, सब संयुक्त है | इसलिए कोई तारा कितनी ही दूर क्यों न हो, वह भी जब बदलता है तो हमारे ह्रदय की गति को बदल जाता है | और सूरज चाहे कितने ही फासले पर क्यों न हो, जब वह ज्यादा उत्तप्त होता है तो हमारे खून की धाराएं बदल जाती हैं | हर ग्यारह वर्षों में |
पिछली बार जब सूरज पैर ज्यादा गतिविधि चल रही थी और अग्नि की विस्फोट चल रहे थे, तो एक जापानी चिकित्सक तोमातो बहुत हैरान हुआ | वह चिकित्सक स्त्रियों की खून पर निरंतर काम कर रहा था बीस वर्षों से | स्त्रियों की खून की एक विशेषता है जो पुरुषों क्र खून की नहीं है | उनके मासिक धर्म की समय उनका खून पतला हो जाता है | और पुरुष का खून पुरे समय एक सा रहता है | स्त्रियों का खून मासिक धर्म की समय पतला हो जाता है, या गर्भ जब पेट में होता हैं तब उनका खून पतला हो जाता है | पुरुष और स्त्री की खून में एक बुनियादी फर्क तोमातो अनुभव कर रहा था |
लेकिन जब सूरज पर बहुत जोर से तूफान चल रहे थे आणविक शक्तियों की-हर ग्यारह वर्ष में चलते हैं-तो वह चकित हुआ की पुरुषों कब खून भी पतला हो जाता है | जब सूरज पर आणविक तूफान चलता है तब पुरुष का खून भी पतला हो जाता है | यह बड़ी नई घटना थी, यह इसके पहले कभी रिकॉर्ड नहीं की गयी थी की पुरुष की खून पर सूरज पर चलने वाले तूफान का कोई प्रभाव पड़ेगा | और अगर खून पर प्रभाव पड़ सकता है तो फिर किसी भी चीज पर प्रभाव पड़ सकता हैं |
एक दूसरा अमरीकन विचारक है , फ्रेंक ब्राउन | वह अंतरिक्ष यात्रियों की लिए सुविधाएं जुटाने का काम करता रहा है | उसकी आधी जिंदगी , अंतरिक्ष में जो मनुष्य यात्रा करने जाएंगे उनको तकलीफ न हो , इसके लिए काम करने की रही है | सबसे बड़ी विचारणीय बात यही थी की पृथ्वी को छोड़ते ही अंतरिक्ष में न मालूम कितने प्रभाव होंगे , न मालूम कितनी धाराएं होंगी रेडिएशन की , किरणों की - वे आदमी पर क्या प्रभाव करेंगी ?
लेकिन दो हजार साल से ऐसा समझा जाता रहा है अरस्तु के बाद , पश्चिम में ,कि अंतरिक्ष शून्य है , वहां कुछ है ही नहीं | दो सौ मील कि बाद पृथ्वी पर हवाएं समाप्त हो जाती हैं , और फिर अंतरिक्ष शून्य है | लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों की खोज ने सिद्ध किया कि वह बात गलत है | अंतरिक्ष शून्य नहीं है , बहुत भरा हुआ हैं | और न तो शून्य हैं , न मर्त है ;बहुत जीवंत है | सच तो यह है कि पृथ्वी की दो सौ मील की हवाओं की पर्तों सारे प्रभावों को हम तक आने से रोकती हैं | अंतरिक्ष में तो अद्भुत प्रवाहों की धाराएं बहती रहती हैं | उनको आदमी सह पाएगा या नहीं ?
तो आप जान कर हैरान होंगे और हसेंगे भी कि आदमी को भेजने के पहले ब्राउन ने आलू भेजे अंतरिक्ष में | क्योंकि ब्राउन का कहना है की आलू और आदमी में बहुत भीतरी फर्क नहीं है | अगर आलू सड़ जाएगा तो आदमी नहीं बच सकेगा ;और अगर आलू बच सकता है तो ही आदमी बच सकेगा |आलू बहुत मजबूत प्राणी है | और आदमी तो बहुत संवेदनशील है | अगर आलू भी नहीं बच सकता अंतरिक्ष में और सड़ जाएगा तो आदमी के बचने का कोई उपाय नहीं है | अगर आलू लौट आता है जीवंत , मरता नहीं है , और उसे जमीन में बोने पर अंकुर निकल आता है , तो फिर आदमी को भेजा जा सकता हैं | तब भी डर है कि आदमी सह पाएगा या नहीं |
इससे एक और हैरानी की बात ब्राउन ने सिद्ध की कि आलू जमीन के भीतर पड़ा हुआ, या कोई भी बीज जमीन के भीतर पड़ा हुआ भी बढ़ता है सूरज के ही सम्बन्ध में ! सूरज ही उसे जगाता, उठाता है | उसके अंकुर को पुकारता और ऊपर उठाता है |
ब्राउन एक दूसरे शास्त्र का अन्वेषक है | और उस शास्त्र को अभी ठीक -ठीक नाम मिलना शुरू हो रहा है | लेकिन अभी उसे कहते हैं: प्लेनेटरी हेरिडिटी , उपग्रही वंशानुक्रम |अंग्रेजी में शब्द का है ,' हॉरॉस्कोप |' वह यूनानी हॉरोस्कोप का रूप है | हॉरोस्कोप , यूनानी शब्द का अर्थ होता है : मैं देखता हूँ जन्मते हुए ग्रह को | शब्द का अर्थ होता है |
असल में जब एक बच्चा पैदा होता है तब उसी समय पृथ्वी के चारों ओर क्षितिज पर अनेक नक्षत्र जन्म लेते हैं , उठते हैं | जैसे सूरज उठता है सुबह | जैसे सुबह सूरज उगता है , साँझ डूबता है , ऐसे ही चौबीस घंटे अंतरिक्ष में नक्षत्र उगते हैं और डूबते हैं | जब एक बच्चा पैदा हो रहा है - समझें सुबह छह बजे बच्चा पैदा हो रहा है - वही वक्त सूरज भी पैदा हो रहा है | उसी वक्त ओर कुछ नक्षत्र पैदा हो रहे हैं , कुछ नक्षत्र डूब रहे हैं | कुछ नक्षत्र ऊपर हैं , कुछ नक्षत्र उतार पर चले गए, कुछ नक्षत्र चढ़ाव पर हैं | यह बच्चा जबअ पैदा हो रहा हैं तब अंतरिक्ष की ,अंतरिक्ष में नक्षत्रों की एक स्थिति हैं |
अब तक ऐसा समझा जाता था , और अभी भी अधिक लोग जो बहुत गहराई से परिचित नहीं हैं वे ऐसा ही सोचते हैं , की चाँद - तारों से आदमी के जन्म का क्या लेना -देना ! चाँद - तारे कहीं भी हों, इससे एक गावं में बच्चा पैदा हो रहा हैं ,इससे क्या फर्क पड़ेगा !
फिर वे यह भी कहते हैं कि एक ही बच्चा पैदा नहीं होता, एक तिथि में एक नक्षत्र की स्थिति में लाखों बच्चे पैदा होते हैं | उनमे से एक प्रेजिडेंट बन जाता हैं किसी मुल्क का , बाकी तो नहीं बन पाते | एक उनमें से सौ वर्ष का होकर मरता हैं , दूसरा दो दिन का ही मर जाता हैं | एक उनमें से बहुत बुद्धिमान होता हैं और एक निर्बुद्धि रह जाता हैं |
तो साधारण देखने पर पता चलता हैं की इन ग्रह - नक्षत्रों की स्थिति का किसी के बच्चे के पैदा होने से , हॉरोस्कोप से क्या सम्बन्ध हो सकता हैं ? यह तर्क इतना सीधा और साफ़ मालूम होता हैं की ये चाँद - तारे एक बच्चे के जन्म की चिंता भी नहीं करते हैं | और फिर एक बच्चा ही पैदा नहीं होता, एक स्थिति में लाखों बच्चे पैदा होते हैं, पर लाखों बच्चे एक से नहीं होतें | इन तर्को से ऐसा लगने लगा था - तीन सौ वर्षो से ये तर्क दिए जा रहें - कि कोई सम्बन्ध नक्षत्रों से व्यक्ति के जन्म का नहीं हैं |
लेकिन ब्राउन , और इन सारे लोगों की , तोमातो, इन सबकी खोज का एक अद्भुत परिणाम हुआ हैं | और वह यह कि ये वैज्ञानिक कहते हैं , अभी हम यह तो नहीं कह सकते कि व्यक्तिगत रूप से कोई बच्चा प्रभावित होता होगा , लेकिन अब हम यह पक्के रूप से कह सकते हैं कि जीवन प्रभावित होता हैं | एक बात , व्यक्तिगत रूप से बच्चा प्रभावित होता होगा , हम अभी नहीं कह सकते हैं , लेकिन जीवन निश्चित रूप से प्रभावित होता हैं | और अगर जीवन प्रभावित होता हैं तो हमारी खोज जैसे -जैसे सूक्ष्म होगी , वैसे -वैसे हम पाएंगे कि व्यक्ति भी प्रभावित होता हैं |
इसमें एक बात और खयाल में ले लेनी जरुरी हैं | जैसा सोचा जाता रहा हैं - वह तथ्य नहीं हैं - ऐसा सोचा जाता रहा हैं कि ज्योतिष विकसित विज्ञान नहीं हैं | प्रारम्भ उसका हुआ और फिर वह विकसित नहीं हो सका | लेकिन मेरे देखे स्थिति उलटी हैं | ज्योतिष किसी सभ्यता के द्वारा बहुत बड़ा विकसित विज्ञान हैं , फिर वह सभ्यता खो गई और हमारे हाथ में ज्योतिष के अधूरे सूत्र रह गए | ज्योतिष कोई नया विज्ञान नहीं हैं जिसे विकसित होना हैं , बल्कि कोई विज्ञान हैं जो पूरी तरह विकसित हुआ था और फिर जिस सभ्यता ने उसे विकसित किया वह खो गई | और सभ्यताए रोज आती हैं और खो जाती हैं फिर उनके द्वारा विकसित चीजे भी अपने मौलिक आधार खो देती हैं , सूत्र भूल जाते हैं , उनकी आधारशिलाएं खो जाती हैं |
विज्ञान आज इसे स्वीकार करने के निकट पहुंच रहा है की जीवन प्रभावित होता हैं | और एक छोटे बच्चे के जन्म के समय उसके चिन्त की स्थिति ठीक वैसी होती है जैसे बहुत सेंसिटिव फोटो प्लेट की | इस पर दो-तीन बातें और ख्याल में ले लें, ताकि समझ में आ सके की जीवन प्रभावित होता है | और अगर जीवन प्रभावित होता है तो ही ज्योतिष की कोई संभावना निर्मित होती है, अन्यथा निर्मित नहीं होती | जुड़वा बच्चों को समझने की थोड़ी कोशिश करें |
तो तरह के जुड़वा बच्चे होते है | एक तो जुड़वां बच्चे होते हैं जो एक ही अंडे से पैदा होते है | और दूसरे जुड़वां बच्चे होते हैं जो होते तो जुड़वां हैं लेकिन दो अंडो से पैदा होते हैं | मां के पेट में दो अंडे होते हैं, दो बच्चे पैदा होते है | कभी-कभी एक ही अंडा होता है और एक अंडे के भीतर दो बच्चे होते है | एक अंडे से जो दो बच्चे पैदा होते हैं वे बड़े महत्वपूर्ण हैं | क्योकि उनके जन्म का क्षण बिलकुल एक होता है | दो अंडो से जो बच्चे पैदा होते हैं उन्हें जुडंवा हम कहते जरूर हैं, लेकिन उनके जन्म का क्षण एक नहीं होता
और एक बात समझ लें कि जन्म दोहरी बात है | जन्म का पहला अर्थ तो है गर्भधारण | ठीक जन्म तो उस दिन होता है जिस दिन मां के पेट मे गर्भ आरोपित होता है- ठीक जन्म ! जिसको आप जन्म कहते है वह नंबर दो का जन्म है जब बच्चा मां के पेट से बाहर आता है | अगर हमें ज्योतिष की पूरी खोज-बीन करनी हो- जैसे की हिन्दुओ नई की थी, अकेले हिन्दुओ ने की थी और उसके बड़े उपयोग किए थे-तो असली सवाल यह नहीं है की बच्चा कब पैदा होता है, असली सवाल यह है कि बच्चा कब गर्भ में प्रांरभ करता है अपनी यात्रा, गर्भ कब निर्मित होता है !
क्योंकि ठीक जन्म वही है | इसलिए हिन्दुओ ने तो यह भी तय किया था की ठीक जिस भांति के बच्चे को जन्म देना हो उस भांति के ग्रह-नक्षत्र मे यदि संभोग किया जाए और गर्भधारण हो जाए तो उस तरह का बच्चा पैदा होगा |
अब इसमें मैं थोड़ा पीछे आपको कुछ कहूंगा, क्योकि इस संबंध में भी काफी काम इधर हुआ है और बहुत सी बाते साफ़ हुई है | साधारणत: हम सोचते है की एक बच्चा सुबह छह बजे पैदा होता है, तो छह बजे पैदा होता है इसलिए छह बजे प्रभात में जो नक्षत्रों की स्थिति होती है उससे प्रभावित होता है | लेकिन ज्योतिष को जो गहरा जानते हैं वे कहते हैं कि वह छह बजे पैदा होने की वजह से ग्रह -नक्षत्र उस पर प्रभाव डालते हैं , ऐसा नहीं !वह जिस तरह के प्रभावों के बीच पैदा होना चाहता है उस घडीं और नक्षत्र को जन्म के लिए चुनता है | यह बिलकुल भिन्न बात है | बच्चा जब पैदा हो रहा है, ज्योतिष की गहन खोज करने वाले लोग कहंगे की वह अपने ग्रह -नक्षत्र चुनता है की कब उसे पैदा होना है |
और गहरे जाएंगे तो वह अपना गर्भधारण भी चुनती है | प्रत्येक आत्मा अपना गर्भधारण चुनती है कि कब उसे गर्भ स्वीकार करना है, किस क्षण में | क्षण छोटी घटना नहीं है | क्षण का अर्थ है कि पूरा विश्व उस क्षण में कैसा है! और उस उसे गर्भ क्षण में पूरा विश्व किस तरह की संभावनाओं के द्वार खोलता है |
जब एक अंडे में दो बच्चे एक साथ गर्भधारण लेते हैं तो उनके गर्भधारण का क्षण एक ही होता है और उनके जन्म का क्षण भी एक होता है | अब यह बहुत मजे की बात है की एक ही अंडे से पैदा हुए दो बच्चों का जीवन इतना एक जैसा होता है , इतना एक जैसा होता है की यह कहना मुश्किल है की जन्म का प्रभाव नहीं डालता | एक अंडे से पैदा हुए दो बच्चे , उनका आई `क्यू ; उनका बुद्धि-माप करीब -करीब बराबर होता है | और जो थोड़ा सा भेद दीखता है , वे जो जानते हैं वे कहते हैं की वह हमारी मेजरमेंट की गलती के कारण है। अभी तक हम ठीक मापदंड विकसित नहीं कर पाए हैं जिनसे हम बुद्धि का अंक नाप सकें। थोड़ा सा जो भेद कभी पड़ता है वह हमारे तराजू की भूल -चूक है।
अगर एक अंडे से पैदा हुए दो बच्चों को बिलकुल अलग -अलग पला जाए तो भी उनके बुद्धि - अंक में कोई फर्क नहीं पड़ता। एक को हिंदुस्तान में पाला जाए और एक को चीन में पाला जाए और कभी एक -दूसरे को पता भी न चलने दिया जाए! ऐसी कुछ घटनाएं घटी हैं जब दोनों बच्चे अलग -अलग पड़े, बड़े हुए। लेकिन उनके बुद्धि - अंक में कोई फर्क नहीं पड़ता।
बड़ी हैरानी की बात है , बुद्धि - अंक तो ऐसी चीज है कि जन्म की पोटेंशियलिटी से जुडी है। लेकिन वह जो चीन में जुड़वाँ बच्चा है एक ही अंडे का , जब उसको जुकाम होगा , तब जो भारत में बच्चा है उसको भी जुकाम हो जाएगा। आमतौर से एक अंडे से पैदा हुए बच्चे एक ही साल में मरते हैं। ज्यादा से ज्यादा उनकी मृत्यु में फर्क तीन महीने का होता है और कम से कम तीन दिन का ,पर वर्ष वही होता हैं। अब तक ऐसा नहीं हो सका कि एक ही अंडे से पैदा हुए दो बच्चों की मर्त्यु के बीच वर्ष का फर्क पड़ा हो। तीन महीने से ज्यादा का फर्क नहीं पड़ता अगर एक बच्चा मर गया है तो हम मान सकते है कि तीन दिन के बाद और तीन महीने के बीच दूसरा बच्चा मर जाएगा। इनके रुझान , इनके ढंग , इनके भाव समानांतर होते हैं। और करीब -करीब ऐसा मालूम पड़ता है की ये दोनों एक ही ढंग से जीते है। एक -दूसरे की कॉपी की भाति होते हैं इनका इतना एक जैसा होना और बहुत सी बातों से सिद्ध होता हैं।
हम सबकी चमड़ियाँ अलग - अलग हैं, इंडिविजुअल है। अगर मेरा हाथ टूट जाए और मेरी चमड़ी बदलनी पड़े तो आपकी चमड़ी मेरे हाथ के काम नहीं आएगी। मेरे ही शरीर की चमड़ी उखाड़ कर लगानी पड़ेगी। इस पूरी जमीन पर कोई आदमी नहीं खोजा जा सकता जिसकी चमड़ी मेरे काम आ जाए।
क्या बात है? फिजियोलाजिस्ट से हम पूछें की दोनों की चमड़ी की बनावट में कोई भेद हैं? चमड़ी के रसायन में कोई भेद हैं? चमड़ी में जो तत्व निर्मित करते हैं चमड़ी को, उसमें कोई भेद हैं ?
तो कोई भेद नहीं हैं! मेरी चमड़ी और दूसरे आदमी की चमड़ी को अगर हम रख दें एक वैज्ञानिक को जाचं करने के लिए तो वह यह न बता पाएगा की ये दो आदमियों की चमड़ियाँ हैं। चमड़ी नहीं बिठाई जा सकती। मेरा शरीर उसे इंकार कर देता है। वैज्ञानिक जिसे नहीं पहचान पाते की कोई भेद है , लेकिन मेरा शरीर पहचानता है। मेरा शरीर इंकार कर देता है की इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
हां, एक ही अंडे से पैदा हुए दो बच्चो की चमड़ी ट्रांसप्लांट हो सकती है सिर्फ! एक-दूसरे की चमड़ी को एक-दूसरे पर बिठाया जा सकता है, शरीर इंकार नहीं करेगा। क्या कारण होगा? क्या वजह होगी? अगर हम कहें, एक ही मां-बाप के बेटे हैं। तो दो भाई भी एक ही माँ-बाप के है, उनकी चमड़ी नहीं बदली जा सकती। सिवाय इसके की ये दोनों बेटे एक क्षण में निर्मित हुए हैं और कोई इनमे समानता नहीं है। क्योकि उसी बाप और उसी मां से पैदा हुए दूसरे भाई भी हैं, उन पर चमड़ी काम नहीं करती हैं। उनकी चमड़ी एक-दूसरे पर नहीं बदली जा सकती। सिर्फ इनका बर्थ मोमेंट-बाकी तो सब एक है, वही मां-बाप हैं-सिर्फ एक बात बड़ी भिन है और वह है इनके जन्म का क्षण !
क्या जन्म का क्षण इतने महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है कि उम्र भी दोनों की करीब-करीब, बुध्दि-माप करीब-करीब, दोनों की चमड़ियों का ढंग एक सा, दोनों के शरीर के व्यव्हार करने के बात एक सी, दोनों बीमार पड़ते हैं तो एक सी बीमारियों से, दोनों स्वस्थ होते हैं तो एक सी दवाओं से-क्या जन्म का क्षण इतना प्रभावी हो सकता हैं ?
ज्योतिष कहता रहा है, इससे भी ज्यादा प्रभावी है जन्म का क्षण।
लेकिन आज तक ज्योतिष के लिए वैज्ञानिक सहमति नहीं थी। पर अब सहमति बढ़ती जाती है। इस सहमति में कई नए प्रयोग सहयोगी बने हैं। एक तो, जैसे ही हमने आर्टिफीशियल सैटेलाइट्स, हमने कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़े वैसे ही हमें पता चला की सारे जगत से, सारे ग्रह-नक्षत्रो से, सारे तराओ से निरन्तर अनंत प्रकार की किरणों का जाल प्रवाहित होता है जो पृथ्वी पर टकराता है। और पृथ्वी पर कोई भी ऐसी चीज नहीं है जो उससे अप्रभावित छूट जाए।
हम जानते हैं कि चांद से समुद्र प्रभावित होता हैं। लेकिन हमें खयाल नहीं हैं कि समुद्र में पानी और नमक का जो अनुपात हैं वही आदमी के शरीर में पानी और नमक का अनुपात हैं-दि सेम प्रपोर्शन। और आदमी के शरीर में पैंसठ प्रतिशत पानी हैं; और नमक और पानी का वही अनुपात हैं जो अरब की खाड़ी में हैं। अगर समुद्र का पानी प्रभावित होता हैं चांद से तो आदमी के शरीर के भीतर का पानी क्यों प्रभावित नहीं होगा?
अभी इस संबंध में जो खोज-बीन हुई उसमें दो-तीन तथ्य खयाल में ले लेने जैसे हैं, वह यह कि पूर्णिमा के निकट आते-आते सारी दुनिया में पागलपन की संख्या बढ़ती हैं। अमावस के दिन दुनिया में सबसे कम लोग पागल होते हैं, पूर्णिमा के दिन सर्वाधिक। चांद के बढ़ने के साथ अनुपात पागलों का बढ़ना शुरू होता हैं। पूर्णिमा के दिन पागलखानों मे सर्वाधिक लोग प्रवेश करते हैं और अमावस के दिन पागलखानों सी सर्वाधिक लोग बाहर जाते हैं। अब तो इसके स्टैटिसटिक्स उपलब्ध हैं।
अंग्रेजी में शब्द हैं, 'लूनाटिक'। लूनाटिक का मतलब होता हैं : चांदमारा। लूनार! हिंदी में भी पागल के लिए 'चांदमारा' शब्द हैं। बहुत पुराना शब्द हैं। और 'लूनाटिक' भी कोई तीन हजार साल पुराना शब्द हैं। कोई तीन हजार साल पहले भी आदमियों को खयाल था कि चांद पागल के साथ कुछ करता हैं।
लेकिन अगर पागल के साथ करता हैं तो गैर-पागल के साथ नहीं करता होगा? आखिर मस्तिष्क कि बनावट, आदमी के शरीर के भीतर कि संरचना तो एक जैसी हैं। हां, यह हो शक्ति है कि पागल पर थोड़ा ज्यादा करता होगा, गैर-पागल पर थोड़ा कम कर सकता होगा। यह मात्रा का भेद होगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि गैर-पागल पर बिलकुल नहीं करता होगा। अगर ऐसा होगा तब तो कोई पागल कभी पागल न हो, क्योकि सब गैर-पागल ही पागल होते हैं। पहले तो काम गैर-पागल पर ही करना पड़ता होगा चांद को।
प्रोफेसर ब्राउन ने एक अध्ययन किया है। वह खुद ज्योतिष में विश्वासी आदमी नहीं थे; अविश्वासी थे; और अपने पिछले लेखों में उन्होंने बहुत मजाक उड़ाई है। लेकिन पीछे उन्होंने सिर्फ खोज-बीन के लिए एक काम शुरू किया, कि मिलिटरी के बड़े-बड़े जनरल्स की उन्होनें जन्म-कुंडलियां इकट्ठी किं-डॉक्टर्स की, अलग-अलग प्रोफेशंस की। बड़ी मुश्किल में पड़ गए इकट्ठी करके। क्योकिं पाया कि प्रत्येक प्रोफेशन के आदमी एक विशेष ग्रह में पैदा होते हैं, एक विशेष नक्षत्र-स्थिति में पैदा होते हैं।
जैसे जितने भी बड़े प्रसिद्ध जनरल्स हैं, मिलिटरी के सेनापति हैं, योद्धा हैं, उनके जीवन में मंगल का भारी प्रभाव है। वही प्रभाव प्रोफेसर्स की जिंदगी में बिलकुल नहीं है। ब्राउन ने जो अध्ययन किया कोई पचास हजार व्यक्तियों का, जो भी सेनापति हैं उनके जीवन मे मंगल का प्रभाव भारी है। आमतौर से जब वे पैदा होते हैं तब मंगल के जन्म की घड़ी होती है। ठीक उससे विपरीत जितने पैसिफिस्ट हैं दुनिया में, जितने शांतिवादी हैं, वे कभी मंगल के जन्म के साथ पैदा नहीं होते। एकाध मामले में यह संयोग हो सकता है, लेकिन लाखों मामलो में संयोग नहीं हो सकता। गणितज्ञ एक खास नक्षत्र में पैदा होते हैं, कवि उस नक्षत्र में कभी पैदा नहीं होते। कवि उस नक्षत्र में कभी पैदा नहीं होते! यह कभी एकाध के मामले में संयोग हो सकता है, लेकिन बड़े पैमाने पर संयोग नहीं हो सकता।
असल में कवि के ढंग और गणितज्ञ के ढंग में इतना भेद है कि उनके जन्म के क्षण में भेद होना ही चाहिए। ब्राउन ने कोई दस अलग-अलग व्यवसाय के लोगो का, जिनके बीच तीव्र फासले हैं, जैसे कवि है और गणितज्ञ है; या युध्दखोर सेनापति है और एक शांतिवादी बट्रेंड रसल है; एक आदमी जो कहता है विश्व मे शांति होनी चाहिए और एक आदमी नीत्शे जैसा, जो कहता है जिस दिन युद्ध न होंगे उस दिन दुनिया में कोई अर्थ न रहे जाएगा; इनके बीच बौद्धिक विवाद ही है सिर्फ या नक्षत्रों का भी विवाद है? इनके बीच केवल बौद्धिक फासले हैं या इनकी जन्म कि घड़ी भी हाट बंटाती है ?
जितना अध्ययन बढ़ता जाता है उतना ही पता चलता है कि प्रत्येक आदमी जन्म के साथ विशेष क्षमताओं की सूचना देता है। ज्योतिष के साधारण जानकार कहते हैं कि वह इसलिए ऐसा करता है क्योकि वह विशेष नक्षत्रों की व्यवस्था मैं पैदा हुआ है। मैं आपसे कहना चाहता हूं कि वह विशेष नक्षत्रों में पैदा होने को उसने चुना। वह जैसा होना चाह सकता था, जो उसके होने की आंतरिक संभावना थी, जो उसके पिछले जन्मों का पूरा का पूरा रूप था, जो उसकी संयोजित अर्जित चेतना थी, वह इस नक्षत्र में ही पैदा होगी।
हर बच्चा, हर आने वाला नया जीवन इनसिस्ट करता है अपनी घड़ी के लिए, अपनी घड़ी में ही पैदा होना चाहता है, अपनी ही घड़ी में गर्भाधान लेना चाहता है-दोनों अन्योन्यश्रित हैं, इंटर डिपेंडेंट हैं।
मैंने आपसे कहा कि जैसे समुन्द्र का पानी प्रभावित होता है, सारा जीवन पानी से निर्मित है। पानी के बिना कोई जीवन की संभावना नहीं है। इसलिए यूनान में पुराने दार्शनिक कहते थे, पानी से जीवन ! या पुरानी भारतीय और चीनी और दुसरी दुनिया की माइथोलांजीस भी कहती हैं, पानी से जीवन का जन्म ! आज इवोल्यूशन को मानने वाले, विकास को मानने वाले वैज्ञानिक भी कहते हैं कि जीवन का जन्म पानी से है। शायद पहला जीवन काई, वह जो पानी पर जम जाती है, वही जीवन का पहला रूप है, फिर आदमी तक विकास। जो लोग पानी की ऊपर गहन शोध करते हैं, वे कहते हैं, पानी सर्वाधिक रहस्यमय तत्व है। और जगत से, अंतरिक्ष से तारों का जो भी प्रभाव आदमी तक पहुंचता है उसमें मीडियम, माध्यम पानी है। आदमी की शरीर के जल को ही प्रभावित करके कोई भी रेडिएशन, कोई भी विकीर्णन मनुष्य में प्रवेश करता है।
जल पर बहुत काम हो रहा है और जल के बहुत से मिस्टीरियस, रहस्यमय गुण ख्याल में आ रहे हैं। सर्वाधिक रहस्यमय गुण तो जल के जो खयाल में अभी दस वर्षों में वैज्ञानिकों को आया है वह यह है कि सर्वाधिक संवेदनशीलता जल के पास है, सबसे ज्यादा सेंसिटिव है। और हमारे जीवन में चारों और से जो भी इनफ्लुऐंस गति करता है भीतर वह जल को ही कंपित करके गति करता है। हमारा जल ही सबसे पहले प्रभावित होता है। और एक बार हमारा जल प्रभावित हुआ तो फिर हमारा प्रभावित होने से बचना बहुत कठिन हो जाएगा
मां के पेट में बच्चा जब तैरता है, तब भी आप जान कर हैरान होंगे कि वह ठीक ऐसे ही तैरता है जैसे सागर के जल में। और मां के पेट में जिस जल में बच्चा तैरता है उसमें भी नमक के वही अनुपात होता है जो सागर के जल में है। और मां के शरीर से जो-जो प्रभाव बच्चे तक पहुंचते हैं उनमें कोई सीधा संबंध नहीं होता। यह जान कर आप हैरान होंगे कि मां और उसके पेट में बनने वाले गर्भ के कोई सीधा संबंध नहीं होता, दोनों के बीच में जल है और मां से जो भी प्रभाव पहुंचते हैं बच्चे तक वे जल के ही माध्यम से पहुंचते हैं। सीधा कोई संबंध नहीं होता। फिर जीवन भर भी हमारे शरीर में जल के वही काम है जो सागर मे काम हैं।
सागर में बहुत सी मछलियों का अध्ययन किया गया है। ऐसी मछलियां हैं, जो सब सागर के पूर उतार पर होता है, जब सागर उतरता है, तभी सागर के तट पर आकर अंडे रख जाती हैं। सागर उतर रहा है, वापस। मछलियां रेत में आएंगी सागर की लहरों पर सवार होकर, अंडे देंगी, सागर की लहरों पर वापस लौट जाएंगी। पंद्रह दिन में सागर की लहरें फिर उस जगह आएंगी, तब तक अंडे फूट कर उनके चूजे बाहर आ गए होंगे, आने वाली लहरें उन चूजों को वापस सागर में ले जाएंगी।
जिन वैज्ञानिकों ने इन मछलियां का अध्ययन लिया है वे बड़े हैरान हुए हैं। क्योकि मछलियां सदा ही उस समय अंडे देने आती हैं जब सागर तूफान उतरता होता है। अगर वे चढ़ते तूफान में अंडे दे दें तो अंडे तो तूफान में बह जाएंगे। वे अंडे तभी देती हैं जब तूफान उतरता होता है, एक-एक स्टेप सागर की लहरें पीछे हटती जाती हैं। वे जहां अंडे देती हैं वहां लहर दुबारा नहीं आती फिर, नहीं तो लहर अंडे बहा ले जाएगी। वैज्ञानिक बहुत परेशान रहे हैं कि इन मछलियों को कैसे पता चलता है कि सागर अब उतरेगा? सागर के उतरने की घड़ी आ गई? क्योकि जरा सी भी भूल-चूक समय की, और अंडे तो सब बह जाएंगे! और उन्होंने भूल-चूक कभी नहीं की लाखों साल में, नहीं तो वे खत्म हो गई होतीं मछलिया। उन्होंने कभी भूल की ही नहीं।
पर इन मछलियां के पास क्या उपाय है जिनसे ये जान पाती हैं? इनके पास कौन सी इंद्रिय है जो इनको बताती है कि अब सागर उतरेगा? लाखों मछलियां एक क्षण में पुरे किनारे पर इकट्ठी हो जाएंगी। इनके पास जरूर कोई संकेत-लिपि, इनके पास कोई सूचना का यंत्र होना ही चाहिए। करोड़ों मछलियां दूर-दूर हजारों मील के सागर-तट पर इकट्ठी होकर अंडे रख जाएंगी एक खास घड़ी में।
जो अध्ययन करते हैं, वे कहते हैं कि चांद के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। चांद से इनको जो संवेदनाएं मिलती हैं, मछलियों को उन संवेदनाओ से पता चलता है कि कब उतर पर, कब चढ़ाव पर। चांद से जो उन्हें धक्के मिलते हैं, उन्ही धक्कों के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं है कि उनको पता चल जाए।
यह भी हो सकता हैं-कुछ का खयाल था-कि सागर की लहरों से ही कुछ पता चलता होगा। तो वैज्ञानिकों ने इन मछलियां को ऐसी जगह रखा जहां सागर की लहर ही नहीं है। झील पर रखा,अंधेरे कमरों में पानी रखा लेकिन बड़ी हैरानी की बात है। जब चांद ठीक घड़ी पर आया, और अंधेरे में बंद है मछलियां, उनको चांद का कोई पता नहीं, आकाश का कोई पता नहीं,जब चांद ठीक जगह पर आया, जब समुन्द्र की मछलियां जाकर तट पर अंडे देने लगीं, तब उन मछलियों ने पानी में ही अंडे दे दिए। उनका पानी में ही अंडे छोड़ देना-क्योकि कोई तट नहीं,कोई किनारा नहीं, तब तो लहरों का कोई सवाल न रहा !
अगर कोई कहता हो कि दूसरी मछलियों को देख कर यह दौड़ पैदा हो जाती होगी। वह भी सवाल न रहा। अकेली मछलियों को रख कर भी देखा। ठीक जब करोड़ो मछलियां सागर के तट पर आएंगी। इनके दिमाग को सब तरह से गड़बड़ करने कि कोशिश की मछलियों के। चौबीस घंटे अंधेरे में रखा,ताकि उन्हें पता न चले कि कब सुबह होती है, कब रात होती है। चौबीस घंटे उजाले में भी रख कर देखा, ताकि उनको पता ही न चले कि कब रात होती है। झूठे चांद कि रोशनी पैदा केके देखी कि रोज रोशनी को कम करते जाओ, बढ़ते जाओ। लेकिन मछलियों को धोखा नहीं दिया जा सका। ठीक चांद जब अपनी जगह पर आया तब मछलियों ने अंडे दे दिए। जहां भी थीं, वही उन्होंने अंडे दे दिए।
हजारों-लाखों पक्षी हर साल यात्रा करते हैं हजारों मील की। सर्दियां आने वाली हैं, बर्फ पड़ेगी, तो बर्फ के इलाके से पक्षी उडना शुरू हो जाएंगे। हजारों मील दूर किसी दूसरी जगह वे पड़ाव डालेंगे। वहां तक पहुंचने में अभी उन्हें दो महीने लगेंगे, महीना भर लगेगा। अभी बर्फ गिरनी शुरू नहीं हुई, महीने भर बाद गिरेगी। ये पक्षी कैसे हिसाब लगाते हैं कि अब महीने भर बाद बर्फ गिरेगी? क्योंकि अभी हमारी मौसम को बताने वाली जो वेधशालाएं हैं वे भी पक्की खबर नहीं दे पाती हैं। मैंने तो सुना हैं कि कुछ मौसम की खबर देने वाले लोग पहले ज्योतिषियों से पूछ जाते हैं सड़कों पैर बैठे हुए कि आज क्या खयाल हैं-पानी गिरेगा कि नहीं?
आदमी ने अभी जो-जो व्यवस्था की हैं वह बचकानी मासूम पड़ती हैं। ये पक्षी एक-डेढ़ महीने, दो महीने पहले पता करते हैं कि अब बर्फ कब गिरेगी। और हजारों प्रयोग करके देख लिया गया है कि जिसे दिन, क्योंकि बर्फ का कोई टिकना नहीं है। लेकिन हर पक्षी का तय है कि वह बर्फ गिरने के एक महीने पहले उड़ेगा, तो हर वर्ष वह एक महीने पहले उड़ता है। बर्फ दस दिन बाद गिरे तो वह तो वह दस दिन बाद उड़ता है ;बर्फ दस दिन पहले गिरे तो वह दस दिन पहले उड़ता है। यह बर्फ के गिरने का कुछ निश्च्य तो नहीं है, ये पक्षी कैसे उड़ जाते हैं महीने भर पहले पता लगा कर?
जापान में एक चिड़िया होती है जो भूकंप आने के चौबीस घंटे पहले गांव खाली कर देती है। साधारण गांव की चिड़िया है। हर गांव में बहुत होती हैं। भूकंप आने के चौबीस घंटे पहले चिड़िया गांव खाली कर देती है। अभी भी वैज्ञानिक दो घंटे के पहले भूकंप का पता नहीं लगा पाते। और दो घंटे पहले भी अनसटेंटी होती है, पक्का नहीं होता है। सिर्फ प्रोबेबिलिटी होती है।, संभावना हटी है कि भूकंप हो सकता है। लेकिन चौबीस घंटे पहले! तो जापान में तो भूकंप का फौरन पता चल जाता है। जिस गांव से चिड़िया हट गई है, गांव में दिखाई नहीं पड़ती। इस चिड़िया को कैसे पता चलता होगा?
वैज्ञानिक अभी दस वर्षों में एक नई बात कह रहे हैं और वह यह कि प्रत्येक प्राणी के पास कोई ऐसी अंतर-इंद्रिय है जो जागतिक प्रभावों को अनुभव करती है। शायद मनुष्य के पास भी है, लेकिन मनुष्य ने अपनी बुध्दिमानी में उसे खोया है। मनुष्य अकेला प्राणी है जगत में जिसके पास बहुत चीजें हैं जो उसने बुध्दिमानी में खो दी हैं ;और बहुत सी चीजें जो उसके पास नहीं थीं उसने बुध्दिमानी में उनको पैदा करके खतरा मोल ले लिया है। जो है उसे खो दिया है, जो नहीं है उसे बना लिया है।
लेकिन छोटे से छोटे प्राणी के पास भी कुछ संवेदना के अंतर-स्रोत हैं। और अब इसके लिए वैज्ञानिक आधार मिलने शुरू हो गए हैं कि अंतर-स्रोत हैं। ये अंतर-स्रोत इस बात की खबर late हैं कि इस पृथ्वी पैर जो जीवन है वह आइसोलेटेड नहीं है, वह सरे ब्रह्माण्ड सी संयुक्त है। और कहीं भी कुछ घटना घटती है तो उसके परिणाम यहां होने शुरू हो जाते हैं।
जैसा मैं आपसे कह रहा था पैरासेलीसस के संबंध में, आधुनिक चिकित्सक भी इस नतीजे पर पहुंच रहे हैं कि जब भी सूर्य पर सूर्य पर अनेक बार धब्बे प्रकट होते हैं। ऐसे भी सूर्य पर कुछ धब्बे, डाट्स, स्पाट्स होते हैं। कभी वे बढ़ जाते हैं, कभी वे कम हो जाते है। जब सूर्य पर स्पाट्स बढ़ जाते हैं तो जमीन पर बीमारियों बढ़ जाती हैं। और जब सूर्य पर स्पाट्स कम हो जाते हैं तो जमीन पर बीमारियां कम हो जाती हैं। और जमीन से हम बीमारियां कभी न मिटा सकेंगे, जब तक सूर्य के स्पाट्स कायम है।
हर ग्यारह वर्ष में सूरज पर भारी उत्पात होता हैं, बड़े विस्फोट होते हैं। पर जब ग्यारह वर्ष में सूरज पर विस्फोट होते हैं और उत्पात होते हैं तो पृथ्वी पर युद्ध और उत्पात होते हैं। पृथ्वी पर युद्धों का जो क्रम है वह हर दस वर्ष का है। महामारियों का जो क्रम है वह दस और ग्यारह वर्ष के बीच का है। क्रांतियों का जो क्रम है वह दस और ग्यारह वर्ष के बीच का है।
एक बार खयाल में आना शुरू हो जाए कि हम अलग और पृथक नहीं हैं, संयुक्त हैं, आर्गेनिक हैं, तो फिर ज्योतिष को समझना आसान हो जाएगा। इसलिए में ये सारी बातें आपसे कह रहा हूं। कुछ आदमी को ऐसा खयाल पैदा हो गया था-अब भी है-कि ज्योतिष एक सुपरस्टीशन, एक अन्धविश्वास है। बहुत दूर तक यह बात सच भी मालूम पड़ती है। असल वही चीज अंधविशवास मालूम पड़ने लगती है जिसके पीछे हम वैज्ञानिक कारन बताने में असमर्थ हो जाएं। वैसे ज्योतिष बहुत वैज्ञानिक है। और विज्ञानं का अर्थ ही होता है कि काज और इफेक्ट के बीच, कार्य और कारण के बीच संबंध की तलाश!
ज्योतिष कहता यही है कि इस जगत में जो भी घटित होता है उसके कारण हैं। हमें ज्ञात न हों, यह हो सकता है। ज्योतिष यह कहता है कि भविष्य जो भी होगा वह अतीत से विच्छित्र नहीं हो सकता,उससे जुड़ा हुआ होगा। आप कल जो भी होंगे वह आज का ही जोड़ होगा। आज तक आप जो हैं वह बीते हुए कल का जोड़ है। ज्योतिष बहुत वैज्ञानिक चिंतन है। वह यह कहता है कि भविष्य अतीत से ही निकलेगा। आपका आज कल से निकला है, आपका आने वाला कल आज से निकलेगा। और ज्योतिष यह भी कहता है कि जो कल होने वाला है वह किसी सूक्ष्म अर्थों में आज भी हो जाना चाहिए।
अब इसे थोड़ा समझें। अब्राहम लिंकन ने मरने के तीन दिन पहले एक सपना देखा, जिसमें उसने देखा कि उसकी हत्या कर दी गई है और व्हाइट हाउस के एक खास कमरे में उसकी लाश पड़ी हुई है। उसने नंबर भी कमरे का देखा। उसकी नींद खुल गई। वह हंसा, उसने अपनी पत्नी को कहा कि मैंने एक सपना देखा है कि मेरी हत्या कर दी गई है और फलां-फलां नंबर-उसी माकन में तो वह सोया हुआ व्हाइट हाउस के-इस मकान के फलां नंबर के कमरे में मेरी लाश पड़ी है। मेरे सिरहाने तू खड़ी हुई है और आस-पास फलां-फलां लोग खड़े हुए हैं। हंसी हुई,बात हुई; लिंकन सो गया, पत्नी सो गई। तीन दिन बाद लिंकन की हत्या हुई और उसी नंबर के कमरे में और उसी जगह उसकी लाश तीन दिन बाद पड़ी थी और उसी क्रम में आदमी खड़े थे।
अगर तीन दिन बाद जो होने वाला है वह किसी अर्थों में आज ही न हो गया हो तो उसका सपना कैसे निर्मित हो सकता है? उसकी सपने में झलक भी कैसे मिल सकती है? सपने में झलक तो उसी बात कि मिल सकती है जो किसी अर्थ में अभी अभी भी कहीं मौजूद हो। तो हम उसकी एक ग्लिम्प्स, खिड़की खोलें और हमें दिखाई पड़ जाए। लेकिन खिड़की के बाहर मौजूद हो! लेकिन कहीं मौजूद हो।
ज्योतिष का मानना है कि भविष्य हमारा अज्ञान है इसलिए भविष्य है। अगर हमें ज्ञान हो तो भविष्य जैसी कोई घटना नहीं है। वह अभी भी कहीं मौजूद है।
महावीर के जीवन में एक घटना का उल्लेख है, और जिस पर एक बहुत बड़ा विवाद चला और महावीर के सामने ही महावीर के अनुयायियों का एक वर्ग टूट गया। और पांच सो महावीर के मुनियों ने अलग पंथ का निर्माण कर लिया उसी बात से।
महावीर कहते थे, जो हो रहा है वह एक अर्थ में हो ही गया। जो हो रहा है वह एक अर्थ में हो ही गया।अगर आप चल पड़े तो एक अर्थ में पहुंच ही गए। अगर आप बूढ़े हो रहे हैं तो एक अर्थ मई बूढ़े हो ही गए महावीर कहते थे, जो हो रहा है, जो क्रियामाण है, वह हो ही गया।
महावीर का एक शिष्य वर्षाकाल में महावीर से दूर था, बीमार था। उसने अपने एक शिष्य को कहा कि मेरे लिए चटाई बिछा दो। उसने चटाई बिछानी शुरू की। मुड़ी हुई, गोल लिपटी हुई चटाई को उसने थोड़ा सा खोला, तब महावीर के उस शिष्य को खयाल आया कि ठहरों, महावीर कहते हैं-जो हो रहा है वह हो ही गया! तू आधे में रुक जा! चटाई खुल तो रही है, लेकिन खुल नहीं गई-रुक जा! उसे अचानक खयाल हुआ कि यह तो महावीर बड़ी गलत बात कहते हैं। चटाई आधी खुली है, लेकिन खुल कहां गई! उसने चटाई वहीं रोक दी। वह लौट कर वर्षाकाल के बाद महावीर के पास आया और उसने कहा कि आप गलत कहते हैं कि जो रहा है वह हो ही गया! क्योंकि चटाई अभी भी आधी खुली रखी है-खुल रही थी, लेकिन खुल नहीं गई! तो में आपकी बात गलत सिद्ध करने आया हूं।
महावीर ने उससे जो कहा, वह नहीं सझम पाया होगा, क्योंकि वह बहुत बाल-बुद्धि का रहा होगा, अन्यथा ऐसी बात लेकर नहीं आता। महावीर ने कहा : तूने रोका, रोक ही रहा था, और रुक ही गया! वह जो चटाई तू रोका, रोक रहा था, रुक गया! तूने सिर्फ चटाई रुकते देखी, एक और कि या भी साथ चल रही थी, वह हो गई! और फिर कब तक तेरी चटाई रुकी रहेगी? खुलनी शुरू हो गई है, खुल ही जाएगी। तू लौट कर जा ! वह जब लौट कर गया तो देखा, एक आदमी खोल कर उस पर लेटा हुआ है। विश्राम कर रहा था। इस आदमी ने सब गड़बड़ कर दिया। पूरा सिद्धांत ही खराब कर दिया।
महावीर जब यह कहते थे कि जो हो रहा है वह हो ही गया, तो वे यह कहते थे, जो हो रहा है वह तो वर्तमान है, जो हो ही गया वह भविष्य है। कली खिल रही है-खिलही गई-खिल ही जाएगी। वह फूल तो भविष्य में बनेगी, अभी तो खिल ही रही है, अभी तो कली ही है, लेकिन जब खिल ही रही है तो खिल जाएगी। उसका खिल जाना भी कहीं घटित हो गया।
अब इसे हम जरा और तरह से देखें, थोड़ा कठिन पड़ेगा।
हम सदा अतीत से देखते हैं। कली खिल रही है। हमारा जो चिंतन है, आमतौर से वह पास्ट ओरिएन्टेड है, अब अतीत से बंधा है। कहते हैं, कली खिल रही है, फूल की तरफ जा रही है, कली फूल बनेगी। लेकिन इससे उल्टा भी हो सकता है ! यह ऐसा है जैसे मैं आपको पीछे से धक्का दे रहा हूं, आपको आगे सरका रहा हूं। ऐसा भी हो सकता है, कोई आपको आगे से खींच रहा है। गति दोनों तरह हो सकती है। मैं आपको पीछे से धक्के दे रहा हूं, आप आगे जा रहे हैं। ऐसा भी हो सकता है, कोई आपको आगे से खींच रहा है, पीछे से कोई धक्का नहीं दे रहा है, और आप आगे जा रहे हैं।
ज्योतिष का मानना है कि यह अधूरी दृष्टि है कि अतीत धक्का दे रहा है और भविष्य हो रहा है । पूरी दृष्टि यह है कि अतीत धक्का दे रहा है और भविष्य खींच रहा है। कली फूल बन रही है, इतना ही नहीं; फूल कली को फूल बनने के लिए पुकार भी रहा है, खींच भी रहा हैं। अतीत पीछे है, भविष्य आगे है, अभी वर्तमान के क्षण मैं एक कली हैं। पूरा अतीत धक्का दे रहा है, खुल जाओ ! पूरा भविष्य आवाहन दे रहा है, खुल जाओ ! अतीत और भविष्य दोनों के दबाब मैं कली फूल बनेगी। अगर कोई भविष्य न हो तो अतीत अकेला फूल न बना पाएगा। क्योंकि भविष्य में जगह चाहिए, स्पेस चाहिए। भविष्य स्थान दे तो ही कली फूल बन पाएगी।
अगर कोई भविष्य न हो तो अतीत कितना ही सिर मारे, कितना ही धकाए-मैं आपको पीछे से कितना ही धक्का दूँ, लेकिन सामने एक दीवाल हो तो मैं आपको आगे न हटा पाऊंगा। आगे जगह चाहिए। मैं धक्का दूँ और आगे की जगह आपको स्वीकार कर ले, आमंत्रण दे दे कि आ जाओ, अतिथि बना ले, तो ही मेरा धक्का सार्थक हो पाए। मेरे धक्के के लिए भविष्य में जगह चाहिए। अतीत काम करता है, भविष्य जगह देता है।
ज्योतिष की दृष्टि यह है कि अतीत पर खड़ीहुई दृष्टि अधूरी है, आधी वैज्ञानिक है ! भविष्य पुरे वक्त पुकाए रहा है, पुरे वक्त खींच रहा है। हमें पता नहीं है, हमें दिखाई नहीं पड़ता। यह हमारी आंख की कमजोरी है, यह हमारी दृष्टि की कमजोरी है। हम दूर नहीं देख पाते। हमें कल कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता।
कृष्णमूर्ति की जन्म-कुंडली देखें कभी तो हैरान होंगे। अगर एनी बेसेंट ने और लीडबीटर ने फिकर की होती और कृष्णमूर्ति की जन्म-कुंडली देख ली होती तो भूल कर भी कृष्णमूर्ति जिस संगठन से संबंधित होंगे, उस संगठन को नष्ट करने वाले होंगे, जिस संस्था से संबंधित होंगे, उस संस्था को विसर्जित करवा देंगे; जिस संगठन के सदस्य बनेंगे, वह संगठन मर जाएगा।
लेकिन एनी बेसेंट भी मानने को तैयार नहीं होती। कोई सोच भी नहीं सकता था। लेकिन हुआ यह। थियोसाफी ने उन्हें खड़ा करने की कोशिश की। थियोसाफी को उनकी वजह से इतना धक्का लगा की वह सदा के लिए मर गया आंदोलन। फिर एनी बेसेंट ने 'स्टार ऑफ दि ईस्ट' नाम की बड़ी संस्था खड़ी की। फिर एक दिन कृष्णमूर्ति उस संस्था को विसर्जित करके अलग हो गए। एनी बेसेंट ने पूरा जीवन उस संस्था को खड़ा करने में समर्पित किया और नष्ट किया अपने को।
लेकिन उसमें कृष्णमूर्ति का भी कुछ बहुत हाथ नहीं है। वे जिन नक्षत्रों की छाया में पैदा हुए हैं उन नक्षत्रों की सीधी सूचना है की वे किसी संस्था में भी डिस्ट्रक्टिव सिद्ध होंगे। किसी भी संस्था के भीतर वे विघटनकारी सिद्ध होंगे।
भविष्य एकदम अनिश्चित है। हमारा अज्ञान भरी है। भविष्य मैं हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता। हम अंधे हैं। भविष्य का हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता है इसलिए हम कहते है कि निश्चित नहीं है। लेकिन भविष्य में दिखाई पड़ने लगे और ज्योतिष भविष्य में देखने की प्रक्रिया है!
तो ज्योतिष सिर्फ इतनी ही बात नहीं है कि ग्रह-नक्षत्र क्या कहते है? उनकी गणना क्या कहती है ? यह तो सिर्फ ज्योतिष का एक डाइमेन्शन, एक आयाम है। फिर भविष्य को जानने के और आयाम भी है। मनिष्य के हाट पर खिंची हुई रेखाए है, मनुष्य के माथे पर खिंची हुई रेखाए हैं, मनुष्य के पैर पर खिंची हुई रेखाए हैं। पर ये भी बहुत ऊपरी हैं। मनुष्य के शरीर मैं छिपे हुए चक्र हैं उन सब चक्रों का अलग-अलग संवेदन है। उन सब चक्रों की प्रतिपल अलग-अलग गति है, फ्रीकवेंसीहै। उनकी जांच है। मनुष्य के पास छिपा हुआ अतीत का पूरा संस्कार-बीज है।
रान हुब्बार्ड ने एक नया शब्द और एक नई खोज पश्चिम में शुरू की है। पूरब के लिए तो बहुत पुरानी है। वह खोज है : टाइम ट्रेक। हुब्बार्ड का खयाल है कि प्रत्येक व्यक्ति जहां भी जीया है-इस पृथ्वी पर या कहीं और किसी ग्रह पर, आदमी कि तरह या जानवर की तरह या पौधे की तरह या पत्थर की तरह-आदमी जीया है अनंत यात्रा मैं, वह पूरा टाइम ट्रेक, समय की पूरी की पूरी धरा उसके भीतर अभी भी संरक्षित है। और वह धारा खोली जा सकती है। और उस धारा मैं आदमी को पुन: प्रवाहित किया जा सकता है।
हुब्बार्ड की खोजों मैं यह खोज बड़ी कीमत की है। इस टाइम ट्रेक पर हुब्बार्ड ने कहा है की आदमी के भीतर इनग्रेंस है। एक तो हमारे पास स्मृति है जिसमें हम याद रखते हैं की कल क्या हुआ, परसों क्या हुआ। यह स्मृति कामचलाऊ है, यह रोजमर्रा की है। जैसे हर आदमी दुकान पर या आफिस मैं रोजमर्रा की वही रखता है। वह कामचलाऊ होती है। वह रोज बेकार हो जाती है। वह असली नहीं है। वह स्थायी भी नहीं है। यह हमारी कामचलाऊ की स्मृति है जिसमें हम रोज काम करते हैं, फिर रोज फेंक देते हैं। पर इससे गहरी एक स्मृति है जो कामचलाऊ नहीं है, जिसमें हमारे जीवन के समस्त अनुभवों का सार, अनंत-अनंत जीवन-पथों पर लिए गए अनुभवों का सार इकट्ठा है।
उसे हुब्बार्ड ने इनग्रेन कहा है। वह हमारे भीतर इनग्रेंड हो गई है। वह भीतर गहरे में दबी हुई पड़ी है पूरी की पूरी। जैसे की एक टेप बंद आपके खीसे में पड़ा हो। उसे खोला जा सकता है। और जब उसे खोला जाता है तो महावीर उसको कहते थे जाति-स्मरण, हुब्बाई कहता है टाइम ट्रेक-पीछे लौटना समय में। जब उसे खोला जाता है तो ऐसा नहीं होता कि आपको अनुभव हो कि आप रिमेंबर कर रहे हैं। ऐसा नहीं होता है कि आप याद कर रहे हैं। यु री-लिव! जब वह खुलती है, जब टाइम ट्रेक खुलता है, तो आपको ऐसा अनुभव नहीं होता कि मुझे याद आ रहा है! न,आप पुनः जीते हैं।
समझ लें, अगर टाइम ट्रेक आपका खोला जाए, जो कि खोलना बहुत कठिन नहीं है, और ज्योतिष उसके बिना अधूरा है। तो ज्योतिष की बहुत गहनतम जो पकड़ है वह तो आपके अतीत को खोलने की है, क्योकि आपका अतीत अगर पूरा पता चल जाए तो अआप्का पूरा भविष्य पता चलता है। क्योंकि आपका भविष्य आपके अतीत से जन्मेगा। आपके भविष्य को आपके अतीत को जाने बिना नहीं जाना जा शक्ति। क्योंकि आपका भविष्य आपके अतीत का बीटा होने वाला है, उसी से पैदा होगा। तो पहले तो आपके अतीत की पूरी स्मृति-रेखा को खोलना पड़े।
अगर आपकी स्मृति-रेखा को खोला दिया जाए-जिसकी प्रक्रियाएं है और विधियां है-तो आप अगर समझ लें कि आपको याद आ रहा है कि आप छह वर्ष के बच्चे हैं और आपके पिता ने चांटा मारा है। तो आपको ऐसा याद नहीं आएगा कि आपको याद आ रहा है कि आप छह वर्ष के बच्चे हैं और पिता चांटा मार रहे हैं; यु विल री-लिव इट। आप इसको पुन: जीएंगे। और जब आप इसको जी रहे होंगे, अगर उस वक्त मैं आपको पूछूं कि तुम्हारा नाम ? तो आप कहेंगे, बबलू। आप नहीं कहेंगे, पुरुषोत्तमदास। छह वर्ष का बच्चा उन्तर देगा। आप री-लिव कर रहे हैं उस वक्त, आप स्मरण नहीं कर रहे हैं, पुरुषोत्तमदास स्मरण नहीं कर रहे हैं कि जब मैं छह वर्ष का था। न, पुरुषोत्तमदास छह वर्ष के हो गए हैं! वे कहेंगे, बबलू! उस वक्त वे जो जवाब देंगे वह छह वर्ष का बच्चा बोलेगा।
अगर आपको पिछले जन्म में ले जाया गया है और आप याद कर रहे हैं कि आप एक सिंह हैं, तो अगर उस वक्त आपको छेड़ दिया जाए तो आप बिलकुल सिंह की तरह गर्जना कर पड़ेंगे । आप आदमी की तरह नहीं बोलेंगे। हो सकता है आप नाखून-पंजो से हमला बोल दें। अगर आप याद कर रहे हैं कि आप एक पत्थर हैं और आपसे कुछ पूछा जाए, तो आप बिलकुल मौन रह जाएंगे आप बोल नहीं सकेंगे। आप पत्थर की तरह ही रह जाएंगे।
हुब्बार्ड ने हजारों लोंगो की सहायता की है। जैसे एक आदमी है जो ठीक से नहीं बोल पता, तो हुब्बार्ड का कहना है कि वह बचपन की किसी स्मृति पर स्टक हो गया, उसके आगे नहीं बढ़ पाया। तो वह उसके टाइम ट्रेक पर उसको वापस से जाएगा। उसके इनग्रेन को तोड़ेगा और जब वह छह वर्ष का हो जाएगा, जहां रुक गई थी, जहां से वह आगे नहीं बढ़ा, फिर वह वहां वापस पहुंच जाएगा, टूट जाएगी धरा, वह आदमी वापस लौट आएगा। तब वह तीस साल का हो जाएगा। वह जो बीच में फैसला था चौबीस साल का, वह उसको पार के लेगा। और हैरानी कि बात है कि हजारो दवाइयां उस आदमी को बोलने में समर्थ नहीं बना पाई थीं, लेकिन यह टाइम ट्रेक पर लौट कर जाना और पुनः वापस लौट आना, वह आदमी बोलने में समर्थ हो जाएगा।
आपको बहुत दफे जो बीमारियां आती हैं, वे केवल टाइम ट्रेक की वजह से आती हैं। बहुत सी बीमारियां है, जैसे दमा। दमा के मरीज की तारीख भी तय रहती है। हर साल ठीक वक्त पर ठीक तारीख पर उसका दमा लौट आता है और इसलिए दमा के लिए कोई चिकित्सा नहीं हो पाती। क्योकि दमा असल में शरीर की बीमारी नहीं है, टाइम ट्रेक की बीमारी है, कहीं स्टक हो गई, कहीं मेमोरी अटक गई है। और जब फिर वही आदमी उस समय को स्मरण कर लेता है-बारह तारीख, वर्षा का दिन-उसको बारह तारीख आई, वर्षा का दिन आया, अब वह तैयारी कर रहा है, अब वह घबड़ा रहा है कि अब होने वाला है।
आप हैरान होंगे कि इस बार उसको जो दमा होगा, ही इज री-लिविंग। वह दमा नहीं है; वह सिर्फ पिछले साल की बारह तारीख को री-लिव कर रहा है। मगर अब उसका आप इलाज करेंगे, आप उसको झंझट में डाल रहे हैं। उसका इलाज करने से कोई मतलब नहीं है। क्योंकि वह एक साल पहले वाला आदमी अब है ही नहीं जिसका इलाज किया जा सके। आप दवाएं बेकार खो रहे हैं, क्योंकि दवाएं उस आदमी में जा रही हैं जो अभी है और बीमार वह आदमी है जो एक साल पहले था। इन दोनों के बीच कोई तारतम्य नहीं है, कोई संबंध नहीं है। आपकी हर दवा की असफलता उसके दमा को मजबूत कर जाएगी और कह जाएगी कि कुछ नहीं होने वाला है। वह अगले साल की तैयारी फिर कर रहा है। सौ में से सत्तर बीमारियां टाइम ट्रेक पर घटित हो गई, पकड़ गई, जकड़ गई बातें हैं, जो हम लौट-लौट कर जी लेते हैं।
ज्योतिष सिर्फ नक्षत्रों का अध्ययन नहीं है। वह तो है ही! तो वह तो हम बात करेंगे। साथ ही ज्योतिष और अलग-अलग आयामों से मनुष्य के भविष्य को टटोलने की चेष्टा है कि वह भविष्य कैसे पकड़ा जा सके। उसे पकड़ने के लिए अतीत को पकड़ना जरुरी है। उसे पकड़ने के लिए अतीत के जो चिन्ह आपके शरीर पर और आपके मन पर छूट गए हैं, उन्हें पहचानना जरुरी है।
आपके शरीर पर भी चिन्ह हैं, आपके मन पर भी चिन्ह हैं। और जब से ज्योतिषी शरीर के चिन्हों पर बहुत अटक गए हैं तब से ज्योतिष की गहराई खो गई। क्योकि शरीर के चिन्ह बहुत ऊपरी हैं। आपके हाथ की रेखा तो आपके मन के बदलने से इसी वक्त भी बदल सकती है। आपकी जो आयु की रेखा है, अगर आपको भरोसा दिलवा दिया जाए हिपनोटाइज करके कि आप पंद्रह दिन बाद मर जाओगे, और आपको पंद्रह दिन तक रोज बेहोश करके यह भरोसा पक्का बिठा दिया जाए कि आप पंद्रह दिन बाद मर जाओगे, आप चाहे मरो, आपकी उम्र की रेखा पंद्रह दिन के समय पर पहुंच कर टूट जाएगी। आपकी उम्र की रेखा में गैप आ जाएगा। शरीर स्वीकार कर लेगा कि ठीक है, मौत आती है।
शरीर पर जो रेखाएं हैं वे तो बहुत ऊपरी घटनाएं हैं; भीतर गहरे में मन है। और जिस मन को आप जानते हैं वही गहरे में नहीं है, वह तो बहुत ऊपर है; बहुत गहरे में तो वह मन है जिसका आपको पता नहीं है। इस शरीर में भी गहरे मई जो चक्र हैं, जिनको योग चक्र कहता है, वे चक्र आपकी जन्मों-जन्मों की संपदा का संगृहीत रूप है। आपके चक्र पर हाथ रख कर जो जनता है वह जान सकता है कि कितनी गति है उस चक्र की। आपके सातों चक्रों को चुकार जाना जा सकता है कि आपने कुछ अनुभव किए हैं कभी या नहीं।
अब में सैकड़ो लोगों के चक्रों पर प्रयोग किया हूं। तो में हैरान हुआ कि एकाध या ज्यादा से ज्यादा दो चक्रों के सिवाय आमतौर से तीसरा चक्र शुरू ही नहीं होता, वह गति ही नहीं की है उसने कभी, वह बंद ही पड़ा है। उसका कभी आपने उपयोग ही नहीं किया।
तो वह आपका अतीत है। उसे जान कर अगर एक आदमी मेरे पास आए और मैं देखूं की उसके सातों चक्र चल रहे हैं, तो उसे कहा जा सकता है की यह तुम्हरा अंतिम जीवन है, अगला जीवन नहीं होगा। क्योंकि सात चक्र चल गए हों तो अगले जीवन का अब कोई उपाय नहीं होगा। क्योकि सात चक्र चल गए हों तो अगले जीवन का अब कोई उपाय नहीं है। क्योकि सात चक्र चल गए हों तो अगले जीवन का अब कोई उपाय नहीं है। इस जीवन में निर्वाण हों जाएगा, मुक्ति हों जाएगी।
महावीर के पास कोई आता तो वे फिकर करते इस बात की कि उस आदमी के कितने चक्र चल रहे हैं? उसके साथ कितनी मेहनत करनी उचित है, क्या हों सकेगा उसके साथ? मेहनत करने का कोई परिणाम होगा या नहीं होगा? या कब हों पाएगा? या कितने जन्म लगेंगे?
भविष्य को टटोलने की चेष्टा है ज्योतिष-अनेक-अनेक मार्गों से। उनमें एक मार्ग, जो सर्वाधिक प्रचलित हुआ, वह ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव मनुष्य के ऊपर। उसके लिए वैज्ञानिक आधार रोज-रोज मिलते चले जाते हैं। इतना तय हों गया है कि जीवन प्रभावित है। और जीवन अप्रभावित नहीं हों सकता है।
दूसरी बात ही कठिनाई की रह गई है: क्या व्यक्तिगत रूप से? एक-एक इंडिविजुअल प्रभावित है? यह जरा चिंता वैज्ञानिकों को लगती है कि एक-एक व्यक्ति? तीन अरब, साढ़े तीन अरब, चार अरब आदमी हैं जमीन पर क्या एक-एक आदमी अलग-अलग ढंग से?
लेकिन उनको कहना चाहिए, यह इतनी परेशानी की बात क्या है! अगर प्रकृति एक-एक आदमी को अलग-अलग ढंग का अंगूठा दे सकती है इंडिविजुअल, और रिपीट नहीं करती। इतनी बारीकी से हिसाब रख सकती है प्रकृति कि एक-एक आदमी को जो अंगूठा देती है, वह इंडिविजुअल, कि उसकी छाप किसी दूसरे आदमी की छाप फिर कभी नहीं होती। अभी ही नहीं, कभी नहीं होती! जमीन पर अरबों आदमी रहे हैं और अरबों आदमी रहेंगे, लेकिन मेरे अंगूठे की जो छाप है वह दुबारा फिर नहीं होगी।
आप हैरान होंगे के मैंने एक अंडे के दो जुड़वां बच्चों की बात कहीं। उसके भी दोनों अंगूठे एक नहीं होते। उनके भो दोनों अंगूठों की छाप अलग होती है। अगर प्रकृति एक-एक आदमी को इतना व्यक्तित्व दे पाती है कि अंगूठे जैसी बेकार चीज को, हम सबको जो बेकार ही है, कुछ खास प्रयोजन का नहीं मालूम पड़ता, उसको इतनी विशिष्टतादे पाती है, तो एक-एक व्यक्ति को आत्मा और जीवन विशिष्ट न दे पाए कोई कारन नहीं मालूम होता।
पर विज्ञान बहुत धीमी गति से चलता है। और ठीक है, वैज्ञानिक होने के लिए उतनी धीमी गति ठीक है। जब तक तथ्य पूरी तरह सिद्ध न हों जाएं तब तक इंच भी आगे सरकना उचित नहीं है। प्रोफेट्स, पैगंबर तो छलांगें भर लेते हैं। वे हजारों-लाखों साल बाद जो तय होगी, उसको कह देते हैं। विज्ञान तो एक-एक इंच सरकता है। और प्राइमरी स्कूल के बच्चे के दिमाग में जो बात आ सके, वही बात! वह बात नहीं जो कि प्रोफेट्स और विजनरीज़, सपने देखने वाले लोग दूर-दूर की चीजें देख लेते हैं उनकी समझ में आ सके, उतनी बात। नहीं, उससे विज्ञान का उतना प्रयोजन नहीं है।
ज्योतिष मूलतः चूंकि भविष्य की तलाश है, और विज्ञान चूंकि मूलतः अतीत कि तलाश है। विज्ञान इस बात की खोज है कि कॉज़ क्या है, कारण क्या है? और ज्योतिष इसी बात की खोज है कि इफेक्ट क्या होगा, परिणाम क्या होगा? इन दोनों के बीच बड़ा भेद है। लेकिन फिर भी विज्ञान को रोज-रोज अनुभव होता है, और कुछ बातें जो अनहोनी लगती थी, लगती थीं कभी सही नहीं हों सकती, वे सही होती हुई मालूम पड़ती हैं।
जैसा मैंने पीछे आपको कहा, अब वैज्ञानिक इसको स्वीकार कर लिए हैं कि प्रत्येक व्यक्ति आपने जन्म के साथ बिल्ट-इन आपने व्यक्तित्व लेकर पैदा होता है। इसको पहले वे नहीं मानने को राजी थे। ज्योतिष इससे सदा से कहता रहा है। जैसे समझें एक बीज है, आम का बीज है। आम के बीज के भीतर किसी न किसी रूप में, जब हम आम के बीज को बो देंगे तो जो वृक्ष पैदा होता है, उसका बिल्ट-इन प्रोग्राम होना चाहिए, उसका ब्लू-प्रिंट होना चाहिए। नहीं तो यह आम का बीज बेचारा, न कोई विशेषज्ञों की सलाह लेता है, न किसी यूनिवर्सिटी में शिक्षा पता है, यह आम के वृक्ष को कैसे पैदा कर लेता है। फिर इसमें वैसे ही पत्ते लग जाते हैं, फिर इसमें वैसे ही आम लग जाते हैं। इस बीज की गुठली के भीतर छिपा हुआ कोई पूरा का पूरा प्रोग्राम चाहिए। नहीं तो बिना प्रोग्राम के यह बीज क्या कर पाएगा? इसके भीतर सब मौजूद चाहिए। जो भी वृक्ष में होगा वह कहीं न कहीं छिपा ही होना चाहिए। हमें दिखाई नहीं पड़ता, काट-पीट कर हम देख लेते हैं, कहीं दिखाई नहीं पड़ता । लेकिन होना तो चाहिए ही। अन्यथा आम के बीज से फिर नीम निकल सकती थी। भूल-चूक हों जाती। लेकिन कभी भूल होती नहीं दिखाई पड़ती। वह आम ही निकल आता है। सब रिपीट हों जाता है, फिर वही पुनरुक्त कर जाता है।
इस छोटे से बीज में अगर सारी की सारी सूचनाएं छिपी हुई नहीं हैं कि इस बीज को क्या करना है-कैसे अंकुरित होना है, कैसे पत्ते, कैसी शाखाएं कितना बड़ा वृक्ष, कितनी उम्र का वृक्ष, कितना ऊंचा उठेगा-यह सब इसमें छिपा होना चाहिए। कितने फल लगेंगे, कितने मीठे होंगे, पकेंगे कि नहीं पकेंगे-यह सब इसके भीतर छिपा होना चाहिए। अगर आम के बीज के भीतर यह सब छिपा है तो आप जब मां के पेट में आते हैं तो आपके बीज में सब छिपा नहीं होगा ?
अब वैज्ञानिक स्वीकार करते हैं कि आंख का रंग छिपा होगा, बाल का रंग छिपा होगा, शरीर की ऊंचाई छिपी होगी, स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य की संभावनाएं छिपी होंगी, बुद्धि का अंक छिपा होगा। क्योंकि इसके सिवाय कोई उपाय नहीं है कि आप विकसित कैसे होंगे; आपके पास प्रोग्राम चाहिए। कोई हड्डी कैसे हाथ बन जाएगी, कोई हड्डी कैसे पैर बन जाएगी! चमड़ी का एक हिस्सा आंख बन जाएगा, एक कण बन जाएग। एक हड्डी सुनने लगेगी, एक हड्डी देखने लगेगी। यह सब कैसे होगा ?
वैज्ञानिक पहले कहते थे, सब संयोग है। लेकिन 'संयोग' शब्द बहुत अवैज्ञानिक मालूम पड़ता है। संयोग का मतलब है चांस। तो फिर कभी पेअर देखने लगे और कभी हाथ सुनने लगे। पर इतना संयोग नहीं मालूम पड़ता! इतना व्यवस्थित मालूम पड़ता है! ज्योतिष ज्यादा वैज्ञानिक बात कहता है। ज्योतिष कहता है कि सब बीज को उपलब्ध है। हम अगर बीज को पढ़ पाएं, अगर हम डिकोड कर पाएं, अगर हम बीज से पूछ सकें कि तेरे इरादे क्या हैं, तो हम आदमी के बाबत घोषणाएँ कर सकते हैं!
वृक्षों के बाबत तो वैज्ञानिक घोषणा करने लगे हैं। बीस साल में आदमी के बाबत बहुत सी घोषणाएं वे करने लगेंगे। और अब तक हम सब समझते रहे कि सुपरस्टीटस है ज्योतिष, अगर घोषणा विज्ञान करेगा तो यह ज्योतिष हो जाएगा। विज्ञान घोषणा करने लगेगा।
बहुत पुराने ज्योतिष, ज्योतिष का पुराने से पुराने इजिप्शियन एक ग्रंथ है, जिसको पाइथागोरस ने पढ़ कर और यूनान में ज्योतिष का पहुंचाया। वह ग्रंथ कहता है: काश, हम सब जान सकें, तो भविष्य बिलकुल नहीं है। चूंकि हम सब नहीं जानते, कुछ ही जानते है, इसलिए जो हम नहीं जानते, वह भविष्य बन जाता है। हमें कहना पड़ता है, शायद ऐसा हो! क्योंकि बहुत कुछ है जो अनजाना है। अगर सब जाना हुआ हो तो हम कह सकते हैं, ऐसा ही होगा। फिर इसमें रत्ती भर फर्क नहीं होगा।
आदमी के बीज में भी अगर सब छिपा है आज मैं जो बोल रहा हूं, किसी न किसी रूप मैं मेरे बीज में यह संभावना होनी चाहिए थी। अन्यथा मैं यह कैसे बोलता? अगर किसी दिन यह संभावना हो सकी और आदमी के बीज का देख सके, तो मेरे बीज देख कर, मैंक्या बोल सकूंगा जीवन में, उसकी घोषणा की जा सकती थी। क्या हो संकूगा,क्या नहीं हो संकूगा, क्या बनूंगा, क्या नहीं बनूंगा, क्या घटित होगा, उस सबकी सूचना हो सकती थी। कोई आश्चर्य नहीं है कि हम आज नहीं कल आदमी के बीज में झांकने में समर्थ हो जाएं।
जन्म-कुंडली या होरोस्कोप उसका ही टटोलना है। हजारों वर्ष से हमारी कोशिश यही है की जो बच्चा पैदा हो रहा है वह क्या हो सकेगा? हमें कुछ तो अंदाज मिल जाए! तो शायद हम उसे सुविधा दे पाएं। शायद हम उससे आशाऐं बांध पाएं। जो होने वाला है, मुल्ला नसरुद्दीन ने आपने जीवन के अंत में कहा है की मैं सदा दुखी था; फिर एक दिन मैं अचानक सुखी हो गया। गांव भर के लोग चकित हो गए की जो आदमी सदा दुखी था और जो आदमी सदा हर चीज का अंधेरा पहलू देखता था, वह अचानक प्रसत्र कैसे हो गया! जो हमेशा पेसिमिस्ट था, जो हमेशा देखता था कि कांटे कहां-कहां हैं!
एक बार नसरुद्दीन के बगीचे में बहुत अच्छी फसल आ गई। सेव बहुत लगे, ऐसे कि वृक्ष लद गए! तो पड़ोस के एक आदमी ने पूछा-सोचा उसने कि अब तो नसरुद्दीन कोई शिकायत न कर सकेगा-कहा कि इस बार तो फसल ऐसी है कि सोना बरस जाएगा, क्या खयाल है नसरुद्दीन! नसरुद्दीन ने बड़ी उदासी से कहा कि और सब तो ठीक है, लेकिन जानवरों को खिलने के लिए सड़े सेव कहां से लाओगे? सब सेव अच्छे हैं, कोई सड़ा हुआ ही नहीं! एक मुसीबत है।
वह आदमी एक दिन अचानक प्रसन्न हो गया तो गांव के लोगों को हैरानी हुई। गांव के लोगों ने पूछा कि तुम प्रसन्न! क्या राज है? तो नसरुद्दीन ने कहा : आई हैव लर्न्ट टू कोआपरेट विद दि इनएवीटेबल। वह जो अनिवार्य है, उसके साथ सहयोग करना सीख गया। बहुत दिन लड़ कर देख लिया। अब मैंने यह तय कर लिया है कि जो होना है, होना है! अब मैं सहयोग करता हूं इनएवीटेबल के साथ। वह जो अनिवार्य है उसके साथ अब मैं सहयोग करता हूं। अब दुख का कोई कारण न रहा। अब मैं सुखी हूं।
ज्योतिष बहुत बातों की खोज थी। उसमें जो अनिवार्य है, उसके साथ सहयोग। वह जो होने ही वाला है, उसके साथ व्यर्थ का संघर्ष नहीं। जो नहीं होने वाला है, उसकी व्यर्थ की मांग नहीं, उसकी आकांक्षा नहीं! ज्योतिष मनुष्य को धार्मिक बनाने के लिए, तथाता में ले जाने के लिए, परम स्वीकार में ले जाने के लिए उपाय था। उसके बहु आयाम हैं।
तो हम धीरे-धीरे एक-एक आयाम पर बात करेंगे। आज तो इतनी बात, कि जगत एक जीवंत शरीर है, आर्गेनिक यूनिटी है। उसमें कुछ भी अलग-अलग नहीं है; सब संयुक्त है। दूर से दूर जो ही वह भी निकट से जुड़ा है; आजुड़ा कुछ भी नहीं है। इसलिए कोई इस भ्रांति में न रहे कि वह आइसोलेटेड आइलैंड है। कोई इस भ्रांति में न रहे कि कोई एक द्वीप है छोटा सा अलग-थलग।
नहीं, कोई अलग-थलग नहीं है, सब संयुक्त है। और हम पुरे समय एक-दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं और एक-दूसरे से प्रभावित हो रहे हैं। सड़क पर पड़ा हुआ पत्थर भी, जब आप उसके पास से गुजरते हैं तो आपकी तरफ अपनी किरणें फेंक रहा हैं। फूल भी फेंक रहा हैं। और आप भी ऐसे ही नहीं गुजर रहे हैं, आप भी अपनी किरणें फेंक रहे हैं। मैंने कहा कि चाँद-तारों से हम प्रभावित होते हैं। ज्योतिष का दूसरा और गहरा खयाल हैं कि चांद-तारे भी हमसे प्रभावित होते हैं। क्योकि प्रभाव कभी भी एकतरफा नहीं होता। जब कभी बुद्ध जैसा आदमी जमीन पर पैदा होता हैं तो चांद यह न सोचे कि चांद पर उनकी, बुद्ध कि, वजह से कोई तूफान नहीं उठते, कि बुद्ध की वजह से चांद पर कोई तूफान शांत नहीं होते! अगर सूरज पर धब्बे आते हैं और सूरज पर अगर तूफान उठते हैं और जमीन पर बीमारियां फ़ैल जाती हैं, तो जब जमीन पर बुद्ध जैसे व्यक्ति पैदा होते हैं और शांति कि धारा बहती हैं और ध्यान का गहन रूप पृथ्वी पर पैदा होता हैं तो सूरज पर भी तूफान फैलने में कठिनाई होती हैं। सब संयुक्त हैं!
एक छोटा सा घास का तिनका भी सूरज को प्रभावित करता हैं और सूरज भी घास के तिनके को प्रभावित करता हैं। न तो घास का तिनका इतना छोटा हैं कि सूरज कहे कि तेरी हम फिकर नहीं करते और न सूरज इतना बड़ा हैं कि यह कह सके कि घास का तिनका मेरे लिए क्या कर सकता हैं। जीवन संयुक्त हैं! यहां छोटा-बड़ा कोई भी नहीं हैं, एक आर्गेनिक यूनिटी हैं-एकात्म इस एकात्म का बोध अगर आए खयाल में तो ही ज्योतिष समझ में आ सकता है, अन्यथा ज्योतिष समझ में नहीं आ सकता।
तो एक तो मैंने यह बात आज कही, कल और आयामों पर हम धीरे-धीरे बात करेंगे।